SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किन्तु अचानक ही एक जबरदस्त तूफान चलता है और बड़ी ही तेजी से बादल बिखरने लगते हैं, थोड़ी ही देर में तो सम्पूर्ण आकाशमण्डल स्वच्छ हो जाता है, आकाश में धूप निकल जाती है और समस्त वातावरण परिवर्तित हो जाता है, वर्षा की आशा धूल में मिल जाती है। इस रूपक के द्वारा पूज्य उपाध्यायजी म. हमें एक नई बात सिखाना चाहते हैं। वे कहते हैं कि जिस प्रकार तीव्र पवन ने विराट् बादलों को क्षण भर में बिखेर दिया, उसी प्रकार से तीव्र तप भी पाप रूपी बादलों की श्रेणियों को क्षण भर में बिखेर देता है, उन्हें नष्टप्राय कर देता है। वाञ्छितमाकर्षति दूरादपि , रिपुमपि व्रजति वयस्यम् । तप इदमाश्रय निर्मलभावा दागम - परम - रहस्यम् ॥विभा० ११६॥ अर्थ-तप दूर रहे मनोरथों को खींचकर निकट ले पाता है । तप से शत्रु भी मित्र में बदल जाता है। हे आत्मन् ! निर्मल भाव से इस तप का आश्रय करो। यही आगम का परम रहस्य है ।। ११६ ।। विवेचन निर्मल भाव से तप करो तप का रहस्य अति गूढ़ है। इसके गूढ़ रहस्य को समझना, सामान्य बुद्धि का काम नहीं है। शान्त सुधारस विवेचन-२६२
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy