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________________ सुमनसो मनसि श्रुतपावना , निदधतां द्वयधिका दशभावनाः । यदिह रोहति मोहतिरोहिताऽद्भुतगतिविदिता समतालता ॥४॥ ( व्रतविलम्बितम् ) अर्थ-हे सुन्दर मन वाले ! कान को पवित्र करने वाली बारह भावनाओं को अपने मन में धारण करो, जिसके परिणामस्वरूप मोह से तिरोहित बनी, जिसकी अद्भुत शक्ति है, वह सुप्रसिद्ध समता रूपी लता अकुरित होगी ।। ४ ।। विवेचन भव्यात्माओं को प्रेरणा पूज्य उपाध्यायजी महाराज भव्यात्माओं को प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि हे सुन्दर मनवालो! आप इन बारह भावनाओं को हृदय में अवश्य धारण करो। . __ ग्रन्थकार की वाणी में कितनी मधुरता व सौष्ठव है, इसका पता हमें प्रस्तुत श्लोक से लग जाता है। धर्माभिमुख बनी आत्माओं के सम्बोधन के लिए कितने सुन्दर शब्दों का वे प्रयोग करते हैं। . ग्रन्थकार फरमाते हैं कि इन भावनाओं का श्रवण कान को पवित्र करने वाला है। ये भावनाएँ आत्म-हितकर होने से ज्यों-ज्यों इन भावनाओं का श्रवण करते जानोगे, त्यों-त्यों आपके हृदय में शान्त रस का प्रवाह बढ़ता हो जाएगा। इन बारह भावनामों के श्रवण से वैराग्य की पुष्टि होगी और अनादि की कुवासनाओं का जोर समाप्त होने लगेगा। शान्त सुधारस विवेचन-८
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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