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________________ चरणसित्तरी और करणसित्तरी की साधना के द्वारा काया का सदुपयोग किया जा सकता है। चरणसित्तरी-पाँच महाव्रतों का पालन, क्षमा प्रादि दस यतिधर्मों का पालन, सत्रह प्रकार के संयम का आसेवन, प्राचार्य उपाध्याय आदि दस की वैयावच्च, ब्रह्मचर्य की नौ बाड़ का पालन, रत्नत्रयी की साधना, बारह प्रकार के तप का आचरण और चार कषायों का निग्रह चरणसित्तरी कहलाती है, जिससे चारित्र शुद्ध और निर्मल बनता है । करणसित्तरी-चार पिंड विशुद्धि, पाँच समितिपालन, बारह भावना, बारह प्रतिमा, पाँच इन्द्रियनिरोध, पच्चीस प्रतिलेखना, तीन गुप्ति और चार अभिग्रह ये करणसित्तरी कहलाते हैं। इस संसार में चारों ओर नाना प्रकार के मत-मतान्तरों का प्रचलन है। स्वमति-कल्पना से अनेक मत उत्पन्न हो गए हैं और हो रहे हैं अतः उन मतों के चंगुल में फँस न जाय, इसकी अत्यन्त सावधानी रखने की आवश्यकता है। इस दुनिया में कोई एकान्त व्यवहार नय को पकड़े हुए है तो कोई एकान्त निश्चय नय को। व्यवहार निश्चय उभय स्वरूप प्रभु-पंथ के साधक विरले ही मिलते हैं, अतः इन बाह्य आडम्बरवादी झूठे पंथों से बचने के लिए पूर्ण सावधान रहना होगा। अत्यन्त सावधानीपूर्वक सद्गुरु की पहचान कर उनके चरणों में जीवन समर्पित कर देना ही हितकारी है। शान्त सुधारस विवेचन-२६७
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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