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________________ विशाल सागर में यात्रा करने के लिए सर्वप्रथम सुयोग्य नाव चाहिये। यदि नाव कमजोर हो अथवा छिद्रयुक्त हो तो उसका मागे बढ़ना व लक्ष्य स्थल तक पहुंचना शक्य नहीं है। छिद्रयुक्त नाव में शीघ्र पानी भर जाने की सम्भावना है और पानी से भरी नाव समुद्रतल में हो पहुँचतो है। अतः सर्वप्रथम नाव के छिद्रों को बन्द करना अनिवार्य है। नाव से यात्रा करने के लिए नाविक पर पूर्ण श्रद्धा भी अनिवार्य है। नाविक पर श्रद्धा रखे बिना व्यक्ति लक्ष्य स्थल तक पहुंच नहीं सकता है। नाव से दीर्घयात्रा के लिए अनुकूल पवन भी चाहिये । अनुकूल पवन से नाव जल्दी-जल्दी आगे बढ़ती है। इसी प्रकार आत्मा रूपी नाव को मोक्ष-नगरी में पहुंचने के लिए सर्वप्रथम प्रास्रवों को रोककर आत्म-नाव को सुदृढ़ बना दे। फिर नाविक स्वरूप तीर्थंकर परमात्मा के प्रति दृढ़ श्रद्धा को धारण करना चाहिये। योगों की शुद्धता रूप अनुकूल पवन से जीवात्मा रूप नाव तीव्र गति से मोक्ष-नगरी की ओर आगे बढ़ सकती है। 0 शान्त सुधारस विवेचन-२५९
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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