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________________ (२) इष्टसंयोग चिन्ता–जो रूप, रस आदि अत्यन्त प्रिय हों, उनके संयोग की सदा चिन्ता करना। (३) रोग चिन्ता-शरीर में किसी प्रकार का रोग हो - गया हो तो उसके निवारण की सतत चिन्ता करना । (४) निदान--धर्म के फलस्वरूप इस लोक तथा परलोक में सांसारिक फल की कामना करना । रौद्रध्यान के चार प्रकार--- (१) हिसानुबन्धी अनन्तानुबन्धी क्रोध के उदयपूर्वक किसी को मार डालने आदि का ध्यान (विचार) करना । (२) मृषानुबन्धी-विश्वासघात करने वाले, अत्यन्त क्रूरतम झूठ का विचार करना। (३) स्तेयानुबन्धी-दूसरे के धन को लूटने का चिन्तन करना। (४) परिग्रह संरक्षणानुबन्धी प्राप्त किए धन के संरक्षण का तीव्र चिन्तन करना। __ शुभ ध्यान में मन को स्थिर कर उपर्युक्त अशुभ ध्यान से मन को रोकने का प्रयत्न करना चाहिये । क्रोधं क्षान्त्या मार्दवेनाभिमानम् , हन्या मायामार्जवेनोज्ज्वलेन । लोभं वारांराशिरौद्रं निरुंध्या , संतोषेण प्रांशुना सेतुनेव ॥ ६ ॥ (शालिनी) शान्त सुधारस विवेचन-२५२
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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