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________________ जंगल की झाड़ियाँ इतनी सघन हैं कि उनमें फँस जाने के बाद निकलने के लिए मार्ग मिलना ही अत्यन्त कठिन है। ___ कल्पना करो, ऐसे भीषण जंगल में आप फंस जायें तो आपकी मनःस्थिति कैसी होगी? क्या क्षण भर के लिए भी आपका मन शान्त रह सकता है ? नहीं। कदापि नहीं। ऐसी परिस्थिति में मन सतत कम्पायमान ही रहेगा। सुरक्षा और संरक्षण के लिए आप प्रयत्न किये बिना नहीं रहेंगे। लेकिन अफसोस ! आपका एक भी प्रयत्न आपको बचा नहीं पा रहा है। जी-जान से किया गया आपका प्रयत्न निष्फल जा रहा है। आपके दुःख की सीमा नहीं रहेगी। दुःख से आपका हृदय भर पाएगा। आपके इस दु:ख के संवेदन की कल्पना मात्र भी अन्य को भयभीत बना देगी। पूज्य उपाध्यायजी महाराज वन की इस भीषणता के दृश्य को अपनी आँख के सामने तादृश्य कराकर इस संसार की भयानकता को समझाना चाहते हैं । प्रोह ! यह संसार तो श्मशान घाट से भी अत्यन्त भयंकर है। फिर भी इस भीषण वन की उपमा के द्वारा इस संसार के वास्तविक स्वरूप का चित्रण प्रस्तुत कर रहे हैं। यह भीषण संसार रूपी वन ! जिस प्रकार सघन वन में से बाहर निकलने का मार्ग नहीं मिल पाता है और व्यक्ति इधर से उधर भटकता रहता है। बस, इसी प्रकार इस संसार में भी प्रात्मा इधर से उधर जन्म-मरण के चक्र में भटक रही है। वह सुख की लालसावश बन्धन से मुक्ति का प्रयत्न करती है, लेकिन वह प्रयत्न ही उसके लिए बन्धनस्वरूप बन जाता है । शान्त सुधारस विवेचन-३
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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