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________________ २१. प्रायोगिकी क्रिया-मन, वचन और काया के योगों से अशुभ व्यापार करना, उसे प्रायोगिकी क्रिया कहते हैं। २२. सामुदानिकी क्रिया-जिस क्रिया से समुदाय रूप में आठों कर्मों का बन्ध हो, अथवा समुदाय में जिस कर्म का बन्ध हो, उसे सामुदानिकी क्रिया कहते हैं । २३. प्रेमिकी क्रिया--जीव-अजीव पदार्थों में प्रेम करने से तथा अन्य जीवों को प्रेम पैदा हो, ऐसे वचन बोलने को प्रेमिकी क्रिया कहते हैं। २४. द्वेषिकी क्रिया-दोष को पैदा करने वाली क्रिया को द्वेषिकी क्रिया कहते हैं। २५. ऐयपिथिकी क्रिया-गमनागमन करने से होने वाली क्रिया ऐयपिथिकी क्रिया कहलाती है । इस प्रकार प्रास्रव के ये कुल ४२ भेद हैं । इत्यास्रवाणामधिगम्य तत्त्वं , निश्चित्य सत्त्वं श्रुतिसन्निधानात् । एषां निरोधे विगलद्विरोधे , सर्वात्मना द्राग् यतितव्यमात्मन् ॥ ८८ ॥ (इन्द्रवज्रा) अर्थ--इस प्रकार प्रास्रवों के तत्त्व को जानकर तथा आगम अभ्यास से तत्त्व का निर्णय कर हे आत्मन् ! इनके विरोध रहित निरोध के लिए तुझे शीघ्र ही प्रयत्न करना चाहिये ।। ८८ ।। विवेचन प्रास्रवद्वारों को बन्द करो प्रस्तुत गाथा में पूज्य उपाध्यायजी म. जागृति का सन्देश शान्त सुधारस विवेचन-२१८
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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