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________________ जिनेश्वर की वाणी का श्रवण करती है; आँखों से शास्त्रों का वाचन, देव-गुरु के दर्शन और जीव-दया का पालन करती है। जिनेश्वर की भक्ति में उपयोगी सुगन्धित पदार्थों की परीक्षा में अपने नाक का उपयोग करती है। जीभ के द्वारा वह प्रभु की स्तुति करती है और शरीर का उपयोग अन्य की सेवा शुश्रूषा में करती है, जबकि इन्हीं पाँचों इन्द्रियों को प्राप्त कर मोहाधीन आत्मा पाँचों इन्द्रियों के अनुकूल विषयों को पाने के लिए दौड़-धूप करती है, अनुकूल विषय मिलने पर राग करती है और प्रतिकूल विषय मिलने पर द्वष करती है। वह कानों से रेडियो के गीत आदि का श्रवण करती है । आँखों से रूपवती स्त्रियों के रूप को देखती है । इस प्रकार पाँचों इन्द्रियों को वह भौतिक शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श में जोड़ती है और इसके फलस्वरूप उस आत्मा में आस्रव का द्वार खुला ही रहता है और अनन्त कार्मण-वर्गणाएँ आकर उस आत्मा पर चोट लगाती हैं। पाँचों इन्द्रियों के कुल २३ विषय हैं । उन विषयों की प्राप्तिअप्राप्ति में राग-द्वेष करने से आत्मा में कर्म का आस्रव होता है। (५) अवत--१. हिंसा के त्याग की प्रतिज्ञा न होना तथा मन, वचन और काया से हिंसा में प्रवृत्त होना 'प्रारणातिपात' नामक अव्रत है। २. झूठ के त्याग की प्रतिज्ञा न होना तथा मन, वचन और काया से झूठ में प्रवृत्त होना ‘मृषावाद' नामक अव्रत है । ___३. चोरी के त्याग की प्रतिज्ञा न होना तथा मन, वचन और काया से चोरी में प्रवृत्त होना 'अदत्तादान' नामक अव्रत है। शान्त सुधारस विवेचन-२१३
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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