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________________ अत्यधिक भार देता है। वह शरीर की शुद्धि से ही मुक्ति पाना चाहता है। परन्तु इस प्रकार के शौचवाद से कभी कर्म-मुक्ति सम्भव नहीं है। ___'प्रशमरति' ग्रन्थ में एक शौचवादी ब्राह्मण की बात आती है, जो इस प्रकार है• किसी नगर में एक ब्राह्मण रहता था, जो अत्यन्त ही शौचवादी था। थोड़ी सी भी अशुद्धि होने पर वह स्नान कर शरीर की शुद्धि करता था। एक बार वह अपने घर से निकला। मार्ग में एक हरिजन झाडू निकाल रहा था। झाडू से उड़ी कुछ धूल उस ब्राह्मण पर आ गई। झिझककर वह ब्राह्मण बोला-'तेरी इस धूल ने मुझे अपवित्र बना दिया।' हरिजन ने कहा-"वाह ! इस धूल से आप अपवित्र हो गए? तब तो इस मार्ग पर बहुत से अपवित्र लोग भी चलते हैं, अतः उन सबसे स्पर्श पाई हुई धूल पर आपके चलने से आप भी अपवित्र हो जानोगे?" शौचवादी ब्राह्मण ने सोचा"बात तो इसकी सत्य है, इस प्रकार यहाँ रहने से तो मैं अपवित्र हो जाऊंगा, अतः मुझे ऐसे स्थान पर चले जाना चाहिये, जहाँ कोई मनुष्य ही नहीं रहता हो।" उसने अपने परिवारजनों से बात कही। सभी ने कहा"इस प्रकार की पवित्रता का आग्रह मत रखो, ऐसी पवित्रता कहीं भी सम्भव नहीं है।" लेकिन हठाग्रही उस ब्राह्मण ने किसी की बात नहीं सुनी शान्त सुधारस विवेचन-१७८
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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