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________________ अर्थ-अलग-अलग विभिन्न मार्गों में अनेक पथिक मिलते हैं, परन्तु उनके साथ मैत्री कौन करता है ? प्रत्येक स्वजन अपनेअपने कर्म के पराधीन है, अतः उनके साथ तू व्यर्थ ही ममता क्यों करता है ? ॥ ६७ ।। विवेचन परिवार पंखीमेला है आपने बस में यात्रा की होगी....रेल में यात्रा की होगी.... दूर-सुदूर के प्रदेशों में पाप गये होंगे....शायद पैदल-विहार भी किया होगा। इन यात्राओं के बीच आज तक हजारों लोगों को देखा होगा....अनेक से एक-दो मिनट की बात भी की होगी, परन्तु उनका स्नेह-सम्बन्ध कब तक रहता है ? अल्प समय के लिए ही तो। ___ रेल में सैकड़ों लोगों से मिलते हैं, पाँच-पच्चीस से बातचीत भी करते हैं, परन्तु उनका प्रेमसम्बन्ध कब तक? जब तक आपका या उनका स्टेशन नहीं आता है तभी तक तो। ज्योंही आपका स्टेशन आया, आप नीचे उतर जाते हैं और घर पहुँचते-पहुँचते तो उन सहयात्रियों को भूल भी जाते हैं। उनसे कोई नाता नहीं, कोई रिश्ता नहीं, कोई याद नहीं, कोई फरियाद नहीं। आप उन्हें भूल जाते हैं और वे आपको भूल जाते हैं । फिर क्या पता, इस जीवन में पुनर्मिलन होगा भी या नहीं। बस, अपनी आत्मा की इस अनन्त-यात्रा में हमें भी अनेक पथिक मिले हैं और मिल रहे हैं। कोई भाई के रूप में है तो कोई बहिन के रूप में, कोई माता के रूप में है तो कोई पिता के रूप में। परन्तु आखिर तो सब पथिक हैं। शान्त सुधारस विवेचन-१७०
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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