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________________ जन्मनि जन्मनि विविध - परिग्रह मुपचिनुषे च कुटुम्बम् । तेषु भवन्तं परभवगमने , नानुसरति कृशमपि सुम्बम् ॥ विनय० ६५ ॥ अर्थ-जन्म-जन्म में तूने विविध परिग्रह और कुटुम्ब का संग्रह किया है। पर-भवगमन के समय उसमें से छोटे से छोटा रुई का टुकड़ा भी तेरे साथ गमन नहीं करता है ।। ६५ ।। विवेचन परलोक में कुछ भी साथ नहीं चलता है अपनी आत्मा के भूतकाल की ओर जरा दृष्टिपात करें। उसमें क्या दिखाई दे रहा है ? अहो! हर जन्म में मैंने जिस-जिस शरीर को धारण किया है, उन्हें इकट्ठा किया जाय तो सैकड़ों मेरुपर्वत के ढेर हो जायें। अहो! हर जन्म में जो माता-पिता किए हैं, उन्हें इकट्ठा किया जाय तो केवलज्ञानी भी उनकी गिनती नहीं कर पाएगे, आखिर वे भी अनन्त ही कहेंगे । जन्म-जन्मान्तरों में मूर्छा से जिस धन का संग्रह किया था, उसका हिसाब लगाया जाय तो एक लाख योजन की ऊँचाई वाला स्वर्ण का मेरुपर्वत भी मिन्दा हो जाय । इस जीवात्मा ने प्रत्येक जीवन में जिन मकानों का निर्माण शान्त सुधारस विवेचन-१६६
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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