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________________ अर्थ-'यह मैं ही हूँ' इस प्रकार इस शरीर के साथ एकता कर जिसका तूने आश्रय लिया है, वह शरीर तो अत्यन्त अधीर है और कमजोर हो जाने पर वह तुझे छोड़ देता है ।। ६४ ।। विवेचन देह की ममता तोड़ो हे विनय ! तू अपनी देह का निरीक्षण कर। ओह ! जो शरीर तेरा नहीं है, उसके साथ तूने एकता सिद्ध कर ली है। याद रख, वह तुझे अन्त में धोखा दिए बिना नहीं रहेगा। यह देह तो आत्मा को शत्रु है। दुनिया में शत्रु को मित्र मानकर चलने वाला हमेशा धोखा ही खाता है । इस देह की गुलाम बनी आत्माएँ पतन के गर्त में ही गिरी हैं। दुनिया में अधिकांश हिंसा, झूठ आदि जो पाप हैं, वे सब इस देह के ममत्व के कारण ही हैं । महापुरुषों ने ठीक ही कहा है-"देह के पोषण में आत्मा का शोषण है।" "दशवकालिक" की यह निम्नलिखित पंक्ति हमें सुन्दर बोध देती है-'देहदुक्खं महाफलं' । समतापूर्वक देह को दिया गया कष्ट महाफल का कारण है। राजा ने मुनि की चमड़ी उतारने का आदेश दिया और जल्लाद तत्काल मुनि के पास पहुंच गए। जल्लादों ने मुनि को राजा की आज्ञा सुनाई, तब मुनि अत्यन्त प्रसन्नचित्त होकर बोले शान्त सुधारस विवेचन-१६४
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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