SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लाल कर अपनी लाठी उठाई और श्रेष्ठिपुत्र से बोला- “मेरे साथ मायाचार.... इसमें गुड़ की राब कहाँ है ?” श्रेष्ठिपुत्र ने सोचा - "अहो ! इस थाल में घेवर, गुलाबजामुन, मावे की मिठाई आदि कोमती मिष्ठान्न हैं और यह गुड़ की राब याद करता है । जरूर, इसने कभी इन मिठाइयों का आस्वादन नहीं किया लगता है, इसीलिए यह बालिश चेष्टा कर रहा है। तत्काल श्रेष्ठिपुत्र ने अवसर देख एक गुलाबजामुन हाथ में लिया और उसके मुँह में डाल दिया । गुलाबजामुन का स्वाद आते ही उसने लाठी नीचे रख दी और थाली में पड़े सभी गुलाबजामुन झपाटे से खा गया । फिर श्रेष्ठिपुत्र ने उसको पूछा - "क्या अब राब लेनी है ? "" उसने कहा - " बस करो । उसकी बात छोड़ो ।” कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति तभी तक संसार के क्षणिक सुखों में आनन्द पाना चाहता है, जब तक उसे आत्मा के वास्तविक सुख की अनुभूति नहीं होती है । अन्त में, ग्रन्थकार महर्षि अपनी यही मनोकामना करते हैं कि विषयसुख से प्रतीत आत्मा के सुख में तुझे सदा प्रेम रहे । इन्द्रियविषय सुख तो क्षणिक है, क्षणभंगुर है, उसमें श्रात्मा को वास्तविक तृप्ति का आनन्द नहीं हो सकता है । विषयसुख से मुक्त जो प्रात्मा का सुख है, वही वास्तविक सुख है । उस सुख के आस्वादन में जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसका वर्णन शब्दातीत है, वह तो अनुभूति का विषय है । हे आत्मन् ! हे विनय ! डूब जा । तू उस सुख के रसास्वादन में O शान्त सुधारस विवेचन- १४७
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy