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________________ अर्थ-वह आत्मा (परमेश्वर) शाश्वत है और सदा ज्ञान, दर्शन और चारित्र के पर्यायों से घिरा हुआ है और एक है। ऐसे परम अविनश्वर परमात्मा मेरे अनुभव मन्दिर में रमण करे ।। ५६ ।। विवेचन हृदय में परमात्मा की स्थापना करो 'उपयोगो लक्षणम्' यह जीव का लक्षण है। आत्मा कभी साकारोपयोग (ज्ञानोपयोग) में रहती है तो कभी निराकारोपयोग (दर्शनोपयोग) में। संसारी अवस्था में, कर्मयुक्त अवस्था में आत्मा का उपयोग अशुद्ध रहता है। अशुद्ध उपयोग के कारण संसारी आत्मा हेय में उपादेय बुद्धि और उपादेय में हेय बुद्धि कर लेती है, फलस्वरूप वह कर्म-बन्धनों से ग्रस्त बनती है और अनेक यातनाएँ भोगती हैं। ज्ञानावरणीय कर्म आत्मा के ज्ञानगुण पर आवरण ला देता है और इस प्रावरण के कारण आत्मा वस्तु के यथावस्थित स्वरूप को जान नहीं पाती है। परन्तु जब आत्मा राग और द्वोष से मुक्त बनकर मोहनीय कर्म का सम्पूर्ण क्षय कर वीतराग बन जाती है, तब तत्काल ही उस पर से ज्ञानावरणीय कर्म का प्रावरण भी सर्वथा हट जाता है और इस प्रावरण के हटने के साथ ही आत्मा अनन्त ज्ञानमय बन जाती है। ज्ञानावररणोय कर्म की पाँच प्रकृतियों (मति ज्ञानावरणीय, श्रुत ज्ञानावरणीय, अवधि ज्ञानावरणीय, मनःपर्यव ज्ञानावरणीय और केवलज्ञानावरणीय) के साथ ही प्रात्मा दर्शनावरणीय की चार प्रकृतियों (चक्षुदर्शनावरणीय, अचक्षुदर्शनावरणीय, अवधिदर्शना शान्त सुधारस विवेचन-१४३
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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