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________________ जानकारी कहीं भी उपलब्ध नहीं है । फिर भी उनके द्वारा विरचित ग्रन्थों में प्रशस्ति के तौर पर लिखे गये श्लोकों के आधार पर उनका कुछ परिचय मिलता है । — उनके जन्म-दिन और जन्म-स्थल का कोई पता नहीं है । उनकी माता का नाम राजश्री और पिता का नाम तेजपाल था । उनके दीक्षा तिथि का कोई उल्लेख नहीं है । नाम विनय विजयजी रखा गया और गृहस्थ जीवन के नाम का और संयम - स्वीकार के बाद उनका वे उपाध्यायश्री कीर्तिविजयजी के शिष्य बने । - प्रत्यन्त सूक्ष्म प्रज्ञा और निर्मल बोध के कारण विनय विजयजी म. ने अनेक ग्रन्थों की रचना की । 'लोकप्रकाश' ग्रन्थ उनके गहन तत्त्वावबोध की साक्षी रूप है । - संस्कृत व्याकरण पर उनका अच्छा अधिकार था । उनके द्वारा विरचित ' है लघुप्रक्रिया' में उनके व्याकरण के सूक्ष्मावबोध का पता चलता है । उनके द्वारा विरचित अन्य रचनाएँ निम्नांकित हैं (१) 'कल्पसूत्र' पर सुबोधिका टीका-चौदह पूर्वघर महर्षि भद्रबाहुस्वामीजी द्वारा पूर्व में से उद्धृत 'कल्पसूत्र' पर आपने 'सुबोधिका' नामक संस्कृत टीका की रचना की है । यह टीका ६५८० श्लोक प्रमाण है । इन्होंने इस टीका की समाप्ति विक्रम संवत् १६९६ की जेठसुद २ के दिन की थी। इसकी भाषा अत्यन्त ही सरल व भाववाही है । वर्तमान काल में पर्युषण पर्व में अधिकांश मुनि भगवन्त, कल्पसूत्र ( १४ )
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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