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________________ अशुभ फल को प्राप्त करती है। यदि गत जन्म में पापकर्म किये हैं तो उसकी सजा भी स्वयं को ही भोगनी पड़ती है। अनेक सतियों के जीवन में भी जो भयंकर आपत्तियाँ आई थीं, उसका भी मुख्य कारण उनका ही कर्म था। यहाँ तक कि तीर्थंकर भगवान पर भी जो भयंकर उपसर्ग होते हैं, उनमें भी उनके ही पूर्वजन्म का कर्म कारण है। तीर्थंकर भी कर्म के फल से बच नहीं सकते हैं तो हम जैसों की क्या हैसियत है। अतः 'जैसा बोप्रोगे-वैसा काटोगे' As you sow, so shall you reap. के नियम को समझकर जीवन में दु:ख के कारणभूत दुष्कर्म की प्रवृत्ति से दूर रहना ही श्रेय का मार्ग है। पर यस्य यावान् परपरिग्रह विविधममतावीवधः जलधिविनिहितपोतयुक्त्या , पतति तावदसावधः ॥ विनय० ५२ ॥ अर्थ-विवध प्रकार की ममताओं से भारी बने प्राणी को जितना-जितना अन्य वस्तुओं का परिग्रह होता है, उतना ही वह समुद्र में रहे यान की तरह नीचे जाता है ।। ५२ ।। विवेचन प्रात्मा ममता से भारी बनती है आपको यदि ट्रेन में सफर करना है तो आप ३६ किलोग्राम तक वजन का सामान अपने साथ ले जा सकते हैं। इससे शान्त सुधारस विवेचन-१३७
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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