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________________ एकत्व भावना एक एव भगवानयमात्मा, ज्ञानदर्शनतरङ्गसरङ्गः। सर्वमन्यदुपकल्पितमेतद् व्याकुलीकरणमेव ममत्वम् ॥४५॥ (स्वागता) अर्थ-यह एक आत्मा ही भगवान है, जो ज्ञान-दर्शन की तरंगों में विलास करने वाली है। इसके सिवाय अन्य समस्त कल्पना मात्र है। ममत्व आकुल-व्याकुल करने वाला है ॥ ४५ ॥ विवेचन प्रात्मा का मौलिक स्वरूप अनित्य, अशरण तथा संसार भावना के बाद हम आत्मा के स्वरूप-चिन्तन रूप एकत्व भावना का विचार करेंगे। अनित्यादि भावनाओं में सांसारिक पदार्थों के स्वरूप का चिन्तन किया था। संसार भावना में आत्मा के परिभ्रमण का विचार किया, अब इस भावना में प्रात्मा का मूल स्वरूप क्या है ? और इसके परिभ्रमरण का क्या कारण है ? इस सन्दर्भ में विचार करेंगे। एकत्व भावना के सन्दर्भ में एक दृष्टान्त याद आ जाता है। शान्त सुधारस विवेचन-१२०
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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