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________________ अर्थ-मोह से मूढ़ चित्त वाला यह प्राणी इधर-उधर भटकता रहता है। नियति से प्रेरित और कर्म के तन्तुषों से बंधा हा यह प्राणो शरीर रूपी पिंजरे में पक्षी की भाँति पड़ा हुअा है, जिसके निकट में ही कृतान्त (यम) रूपी बिलाड रहा हुआ है ।। ३५ ॥ विवेचन देह-पिञ्जरग्रस्त प्राणी पूज्य उपाध्यायजी म. एक रूपक के द्वारा संसारी जीव की वास्तविक स्थिति का प्रदर्शन करते हुए फरमाते हैं कि एक पिंजरे में जब पक्षी को बन्द किया जाता है, तब वह अत्यन्त परेशान हो जाता है, परन्तु धीरे-धीरे वह पक्षी उस पिंजरे का आदी बन जाता है। फिर वह अपनी वास्तविक स्वतन्त्रता को भूल जाता है। • याद आती है एक पोपट को कहानी। पिंजरे में बन्द उस पोपट को किसी ने सिखाया--'स्वतंत्रता में आनन्द है....स्वतंत्रता में प्रानन्द है।' और वह पोपट धीरे-धीरे उस वाक्य को याद कर लेता है और प्रतिदिन उस वाक्य को बोलता है । ___एक दिन किसो आगन्तुक व्यक्ति ने पोपट के मुख से यह बात सुनी। उसने सोचा-यह पक्षी वास्तव में स्वतंत्रता चाहता है, अतः उसने पिंजरे का द्वार खोल दिया और उस पोपट को बाहर निकाल दिया....परन्तु उस आगन्तुक ने एक आश्चर्य देखा-पोपट उड़कर दरवाजे पर बैठा और थोड़ी ही देर में पुनः उस पिंजरे में घुस गया। बस, स्वतन्त्रता....स्वतन्त्रता की पुकार सब करते हैं, शान्त सुधारस विवेचन-६५
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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