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अष्टपाहुडमें भावपाहुडकी भाषावचनिका । २६३
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वादी तिनि वस्तुका एक धर्म ग्रहणकरि तिसका पक्षपात किया जो - हमनैं ऐसैं मान्या है सो ऐसैंही है अन्य प्रकार नांही है । ऐसैं विधि निषेधकर एक एक धर्मके पक्षपाती भये तिनके ये संक्षेपकरि तीनसह तेरसठि भेद भये ।
तहां केई तौ गमन करनां बैठनां खड़ा रहनां खानां पीनां सोवनां उपजनां विनसनां देखनां जाननां करनां भोगनां भूलनां यादि करनां प्रीति, हर्ष करनां विषाद करनां द्वेष करनां जीवनां मरना इत्यादिक क्रिया हैं तिनिकूं जीवादिक पदार्थनिकै देखि कोई कैसी क्रियाका पक्ष किया है. कोईनें कैसी क्रियाका पक्ष किया है ऐसें परस्पर क्रियाविवादकार भेद भये हैं तिनिके संक्षेपकरि एकसौ अस्सी भेद निरूपण किये हैं, विस्तार किये बहुत होय हैं । बहुरि केई अक्रियावादी हैं तिनिनैं जीवादिक पदार्थनिविषै क्रियाका अभाव मांनि परस्पर विवाद करें हैं, केई कहैं हैं जीव जानें नांही है, केई कहैं हैं कछू करे नांही हैं, केई कहैं हैं भोग नही है, केई कहैं है उपजै नांही है, केई कहै हैं विनसे नांही है, केई कहैं हैं गमन नांही करे है, केई कहैं हैं तिष्ठे नांही है इत्यादिक क्रियाके अभावका पक्षपातकरि सर्वथा एकान्ती होय हैं तिनिके संक्षेपकरि चौरासी भेद किये हैं बहुरि केई अज्ञानवादी हैं, तिनिमैं केई तौ सर्वज्ञका अ मानें हैं, केई कहैं हैं जीव अस्ति है यह कौन जानें, केई कहैं हैं जीव नास्ति हैं यह कौन जानें, केई कहैं हैं जीव नित्य है यह कौन जानें,
ई हैं हैं जीव अनित्य है यह कौन जानैं; इत्यादिक संशय विपर्यय अनध्यवसायरूप भये विवाद करें हैं, तिनिके संक्षेपकरि सडसठ भेद कहे हैं । बहुरि केई, विनयवादी हैं, ते केई कहैं है देवादिकका विनयतें सिद्धि है, केई कहैं है गुरुके, विनयतें सिद्धि है, केई कहैं है माता के विनयतें सिद्धि है, केई कहैं हैं पिताके विनय सिद्धि है केई कहैं हैं .