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________________ अष्टपाहुड भाबपाहुडकी भाषावचनिका । २४३ । जाननां, ऐसें त्रिकरण शुद्ध करि भावना करनी । माया मिथ्या निदान शल्य न राखणीं, ख्याति लाभ पूजाका आशय न राखनां ऐसे तत्वकी भावना करनेंतैं भाव शुद्ध होय हैं याका उदाहरण ऐसा जो-स्त्री आदि इंद्रियगोचर होय व ताकै तत्व विचारनां जो ये स्त्री है सो कहा है ? जीवनामक तत्वकी एक पर्याय है अर याका शरीर है सो पुलकी पर्याय है अर यह हावभाव चेटा करै है सो या जीव के तौ विकार भया है सो आवतत्व है अर बाब देश पुगलकी है, या विकार या स्त्रीकी आमाकै कर्मका बंध होय है, यहु विकार याँकै न होय तौ आव बंध यां न होय । बहुरि कदाचित् मैं भी याकूं देखि विकाररूप परिणमूं तो मेरै भी आस्त्रव बंध होय तातैं मोकूं विकाररूप न होनां यह संवर तत्व है बनैं तौ कछू उपदेश करि याका विकार मेदूं ऐसे तत्व की भावनातैं अपना मात्र अशुद्ध न होय तातैं जो दृष्टिगोचर पदार्थ आवै ताविषै ऐसें तत्वकी भावनां राखणीं यह तत्वकी भावनाका उपदेश है ॥ ११४ ॥ आ है है -- ऐसे तत्वकी भावना जेतैं नांही तेतैं मोक्ष नांही, - गाथा - जाव ण भावड़ तच्च जाव ण चिंतेड़ चिंतणीयाई । तावण पावड़ जीवो जरमरणविवज्जियं ठाणं ॥ ११५ ॥ संस्कृत - यावन्न भावयति तच्चं यावन्न चिंतयति चिंतनीयानि । तावन्न प्राप्नोति जीवः जरामरणविवर्जितं स्थानम् ११५ अर्थ – हेमुने ! तैं यह जीव आदि तत्वनिकूं नांहीं भावै है, बहुरि चितवन करने योग्यकूं नांही वितै है तेतैं जरा अर मरणकरि रहित जो स्थान मोक्ष ताहि नांही पावै है | भावार्थ-तत्वकी भावना तौ पूर्व कहीं सो चितवन करनें योग्य धर्म शुध्यानका विषयभूत सो ध्येय वस्तु अपनां शुद्ध दर्शनमयी
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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