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________________ अष्टपाहुडमें बोधपाहुडकी भाषावचनिका । ११३ राग देवनैं कहे तैसैं यचा अनुक्रमतें जाननें, बहुरि देव तीर्थकर, अरहंत अर गुणकरि विशुद्ध प्रव्रज्या ये च्यार जो अरहंत भगवान कहे तैसैं इस ग्रंथविर्षे जानना, ऐसैं ये ग्यारह स्थल भये ॥ ३-४॥ ___ भावार्थ-इहां ऐसा आशय जाननां जो धर्म मार्गमैं कालदोष तें अनेक मत भये हैं तथा जैनमतमैं भी भेद भये हैं तिनिमैं आयतन आदिवि विपर्यय भया है तिनिका परमार्थ भूत सांचा स्वरूप तौ लोक जानैं नाही अर धर्मके लोभी भये जैसी बाह्य प्रवृत्ति देखें तिसहीमैं प्रवर्त्तने लगिजांय, तिनिळू संबोधनेंके आर्थ यह बोधपाहुड रच्या है तामैं आयतन आदि ग्यारह स्थानकनिका परमार्थभूत सांचा स्वरूप जैसा सर्वज्ञ देवनैं कह्या है तैसा कहियेगा, अनुक्रमते जैसैं नाम कहै तैसैंही अनुक्रमकीर इनिका व्याख्यान करियेगा सो जानने योग्य है ॥ ३-४ ॥ ___ आरौं प्रथमही आयतन कह्या ताका निरूपण कहै है;गाथा-मणवयणकायदव्वा आयत्ता जस्स इंदिया विसया । आयदणं जिगमग्गे णिदि संजय रूवं ॥५॥ संस्कृत-मनोवचनकायद्रव्याणि आयत्ताः यस्य ऐंद्रियाः विषयाः आयतनं जिनमार्गे निर्दिष्टं संयतं रूपम् ॥ ५॥ अर्थ-जिनमार्ग वि. संयमसहित मुनिरूप है सो आयतन कह्या है। कैसा है मुनिरूप-जाकै मन वचन काय द्रव्यरूप हैं ते तथा पांच इन्द्रियनिके स्पर्श रस गंध वर्ण शद ये विषय हैं ते 'आयत्ता' कहिये आधीन हैं वशीभूत हैं, इनिकै संयमी मुनि आधीन नांही है ते मुनिकै वशीभूत हैं, ऐसा संयमी है सो आयतन है ॥ ५॥ आणु फेरि कहै है;१-संस्कृत सटीक प्रतिमें 'आसता' ऐसा पाठ है जिसको संस्कृत 'आसक्ताः' है। अ०व०८
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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