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________________ ॥ श्रीः॥ अथ बोधपाहुड। (४) दोहा। देव जिनेश्वर सर्वगुरु बंदू मनवच काय । जा प्रसाद भवि बोधले पालैं जीवनिकाय ॥१॥ ऐसें मंगलाचरण करि श्री कुन्दकुन्द आचार्यकृत गाथाबंध बोधपाहुडकी देशभाषामय वचनिका लिखिये है, तहां प्रथमही आचार्य ग्रंथ करनेकी मंगलपूर्वक प्रतिज्ञा करैहै;गाथा--बहुसत्थअत्थजाणे संजमसम्मत्तसुद्धतवयरणे । वंदित्ता आयरिए कसायमलवजिदे सुद्धे ॥१॥ सयलजणवोहणत्थं जिणमग्गे जिणवरेहिं जह भणियं । वुच्छामि समासेण छकायसुहंकरं सुणह ॥२॥ संस्कृत-बहुशास्त्रार्थज्ञापकान् संयमसम्यक्त्वशुद्धतपश्चरणान् । वन्दित्वा आचार्यान् कषायमलवर्जितान् शुद्धान् ॥१॥ सकलजनबोधनार्थ जिनमार्गे जिनवरैः यथा भणितम् । वक्ष्यामि समासेन षड्कायसुखंकरं श्रृणु ॥२॥ युग्मम् । अर्थ-आचार्य कहै हैं जो मैं आचार्यनिकू वंदिकरि अर छह कायके जीवनिकू सुखका करनेवाला जिनमार्गविषै जिनदेवनैं जैसैं कह्या तैसैं १-मुद्रित सटीक संस्कृत प्रतिमें 'छक्कायहियंकरं ' ऐसा पाठ है।
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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