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________________ ५६२ श्री संवेगरंगशाला क्रीड़ा करते उसने पेटी को आते देख लिया और उसे बाहर निकालकर जब खोली तब उसमें रखा हुआ एक डिब्बा देखा, उसे भी खोला उसमें एक गठरी थी और उसे भी छोड़कर उस जहर को सूंघते ही वह गन्ध प्रिय राजपुत्र उसी समय मर गया। इस प्रकार दुःख को देने वाला घ्राणेन्द्रिय का दृष्टान्त कहा है। अब रसनेन्द्रिय के दोष का उदाहरण अल्पमात्र कहते हैं। वह इस प्रकार : सोदास की कथा भूमि प्रतिष्ठित नगर में अत्यन्त मांस प्रिय सोदास नाम का राजा था। उसने एक समय सारे नगर में अमारि अर्थात् अहिंसा की उद्घोषणा करवाई थी, परन्तु राजा के लिए यत्न पूर्वक मांस को बनाते रसोइया की किसी कारण अनुपस्थिति देखकर बिलाव ने उस माँस को हरण कर लिया, इससे भयभीत हुआ रसोइया ने कसाई आदि के घर में दूसरा माँस नहीं मिलने से किसी एक अज्ञात बालक को एकान्त में मारकर उसके मांस को बहुत अच्छी संस्कारितस्वादिष्ट बनाकर भोजन के समय राजा को दिया। उसे खाकर प्रसन्न हुए राजा ने कहा कि हे रसोइया ! कहो ! यह माँस कहाँ से मिला है ? उस रसोइये ने जैसा बना था वैसे कह दिया। और उसे सुनकर रसा सक्ति से पीड़ित राजा ने मनुष्य के मांस को प्राप्ति के लिए रसोईया को सहायक दिया। इससे राजपुरुषों से घिरा हुआ वह रसोईया हमेशा मनुष्य को मारकर उसका माँस राजा के लिए बनाता था। इस प्रकार बहुत दिनों व्यतीत होते न्यायधीश ने उस राजा को राक्षस समझकर रात्री में बहुत मदिरा पिलाकर जंगल में फैकवा दिया। वहाँ वह हाथ में गदा पकड़कर उस मार्ग से जाते मनुष्य को मारकर खाता था और यम के समान निःशंक होकर घूमता फिरता था। किसी समय रात में उस प्रदेश में से एक समूदाय वहाँ से निकला, परन्तु सोये हुए वह समूह को नहीं जान सका, केवल किसी कारण से अपने साथियों से अलग पड़े मुनियों को आवश्यक क्रिया करते देखा, इससे वह पापी उनको मारने के लिए पास में खड़ा रहा, परन्तु तप के प्रबल तेज से पराभव होते साधुओं के पास खड़ा रहना अशक्य बना और वह धर्म श्रवण कर उसका चिन्तन करते प्रतिबोध प्राप्त किया और वह साधु हो गया। यद्यपि उसने अन्त में प्रतिबोध प्राप्त किया, परन्तु उसने पहले रसना के दोष से राज्य भ्रष्टता आदि प्राप्त किया था। अब स्पर्शनेन्द्रिय के दोष में भी उदाहरण देते हैं। वह इस प्रकार :
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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