SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 506
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री संवेगरंगशाला ४५३ पर चढ़ाओ। राजा को आज्ञा से कोतवाल जिनदत्त को वध स्थान पर ले गये, उस समय हुन्डिका यक्ष ने अवधि ज्ञान का उपयोग दिया, इससे शूली ऊपर अपने शरीर को भेदन किए और जिनदत्त श्रावक को वध के लिए लाए हुए देखकर बड़ा क्रोधित हुआ और उस नगर के ऊपर पर्वत को उठाकर बोला कि अरे ! देव समान इस श्रावक से क्षमा याचना कर विदा करो, अन्यथा इस पर्वत से तुम सब को चकनाचूर कर दूंगा।' इससे भयभीत हुए राजा ने जिनदत्त से क्षमा याचना कर छोड़ दिया। इस तरह हुन्डिक चोर के समान नमस्कार मन्त्र परलोक में सुख को देने वाला है। इसी तरह उभय लोक में इस नमस्कार को सुख का मूल जानकर आराधना के अभिलाषी हे क्षपक मुनिवर्य ! तू हमेशा इसका स्मरण कर ! क्योंकि पन्च परमेष्ठियों को भावपूर्वक नमस्कार करने से जीव को हजारों जन्म मरण से बचाव होता है और बोधि बीज लाभ की प्राप्ति का कारण होता है। संसार का क्षय करते धन्यात्मा के हृदय को बार-बार प्रसन्न करते यह पन्च परमेष्ठि नमस्कार दुान को रोकने वाला होता है। इस तरह पाँच का नमस्कार निश्चय महान् प्रयोजन वाला कहा है। इसलिए जब मृत्यु पास में आती है तब क्षण-क्षण में उसे बहुत बार स्मरण करना चाहिए। इन पाँचों का नमस्कार सर्व पापों का नाश करने वाला है और सर्व मंगलों में प्रथम मंगल है। इस प्रकार यह पन्च नमस्कार नाम का आठवाँ अन्तर द्वार कहा है, अब सम्यग्ज्ञान का उपयोग नामक नौवाँ अन्तर द्वार कहते हैं। __नौवाँ सम्यग्ज्ञानोपयोग द्वार :-हे क्षपक मुनिराज ! तू प्रमाद को मूल में से उखाड़कर ज्ञान के उपयोग वाला बन ! क्योंकि-ज्ञान जीवलोक (सर्व जीवों) का सर्व विघ्नबिना-रोगरहित चक्षु है, प्रकृष्ट दीपक है, सूर्य है और तीन भवन रूपी तमिस्रा गुफा में श्रेष्ठ प्रकाश करने वाला काकीणी रत्न है । यदि जीव लोक में जीवों का ज्ञान चक्षु न हो, तो मोक्षमार्ग सम्बन्धी सम्यक् प्रवृत्ति नहीं होती अथवा कुबोध रूपी तितली को नाश करने वाला ज्ञान दीपक बिना मिथ्यात्व रूपी अन्धकार के समूह से घिरा हुआ विचारा यह जगत कैसा दुःखी होता है ? तथा अन्धकार-अज्ञान का नाशक सम्यग् ज्ञान रूपी सूर्य के प्रभाव से संसार रूपी सरोवर में विवेक रूपी सुन्दर कमल का विकास होता है । यदि यह सम्यग्ज्ञान रूपी काकीणी रत्न का प्रयोग न हो तो अज्ञान रूपी प्रबन्ध अन्धकार से भयंकर इस तीन भवन रूपी तमिस्रा गुफा में से श्री जिनेश्वर रूपी चक्रवर्ती के पीछे चलने वाला यह विचारा मूढ़ भव्यात्मा रूपी सैन्य अस्खलित रूप प्रस्थान करते किस तरह बाहर निकल
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy