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________________ श्री संवेगरंगशाला ४७५ की फला के समूह में से निकलती किरणों के समूह से जहाँ भयंकर अन्धकार नाश होता है, ऐसे पाताल में भी इच्छा के साथ में मन को आनन्द देने वाला, पाँचों इन्द्रियों के विषय जिसके सिद्ध होते ऐसे दानव वहाँ आनन्द करते हैं, वह भी निश्चय नमस्कार मन्त्र के प्रभाव का एक अंश मात्र है। तथा विशिष्ट पदवी, विद्या विज्ञान, विनय तथा न्याय से शोभित और अस्खलित विस्तार से फैलता निर्मल यश से समग्र भवन तल व्याप्त होना, और अत्यन्त अनुरागी स्त्री, पुत्र आदि सारे मित्र तथा स्वजन वाला, आज्ञा को स्वीकार करने में उत्साही बुद्धिमान घर पर कार्य करने वाले नौकर वर्ग, अक्षीण लक्ष्मी के विस्तार का मालिक और भोगों को प्राप्त करने में श्रेष्ठ राजा, मन्त्री आदि विशिष्ट लोगों और प्रजा का अति मान्य हो, मनोवांछित फल की प्राप्ति से सुन्दर और दुःख की बात को चमत्कार करने वाला अर्थात् दुःख जैसा शब्द भी जहाँ नहीं है ऐसा जो मनुष्य जीवन मिलता है वह भी नमस्कार का फल का एक अल्प अंश मात्र है। और जो सुकुमार सर्व श्रेष्ठ अंग वाली सुन्दर चौसठ हजार स्त्रियों वाला महाप्रभावशाली शोभित बत्तीस हजार सामंत राजाओं वाला, श्रेष्ठ नगर समान छियानवें करोड़ गाँव के समूह से अति विस्तार वाला, देव नगर के समान बहत्तर हजार श्रेष्ठ नगरों की संख्या वाला, खेट, कर्वट, मंडब, द्रोण मुख आदि अनेक स्थलों वाला, शोभते, मनोहर, सुन्दर रथों के समूह से धैर्य को देने वाले, शत्रु सैन्य को छेदन करने से अत्यन्त गर्विष्ठ पैदल सैना से व्याप्त मद झरते गंड स्थल वाले प्रचन्ड हाथियों के समूह वाले, मन और पवन तुल्य वेग वाले, चपल खूर से भूमितल को उखाड़ने वाले घोड़ों का समूह संख्या द्वार सोलह हजार यक्षों की रक्षा से व्याप्त, नव निधान और चौदह रत्नों के प्रभाव से सिद्धि होते सर्व प्रयोजन वाला इसमें जो छह खण्ड भरत क्षत्र का स्वामीत्व मिलता है, वह भी निश्चय श्रद्धारूपी जल के सिंचन से सर्व प्रकार से वृद्धि होने वाला श्री पन्च नमस्कार रूप वृक्ष का ही विशिष्ट फल का विलास है। __ और जैसे दो सीप के संपूट में मोती उत्पन्न होते हैं वैसे उज्जवल देव दुष्य वस्त्र से आच्छादित सुन्दर देव शय्या में उत्पन्न हो और उसके बाद जीव को वहाँ मनोहर शरीर वाला, जावज्जीव सुन्दर, यौवन अवस्था वाला, जावज्जीव रोग, जरा, मैल और पसीने रहित निर्मल शरीर वाला, जीवन तक नस, चरबी, हड्डी, मांस, रुधिर आदि शरीर के दुर्गंध से मुक्त, जीवन तक ताजे पुष्प माला और देव दुष्य वस्त्र को धारण करते अच्छी तरह तपा हुआ जातिवंत सुवर्ण और मध्याह्न के सूर्य समान तेजस्वी शरीर की कान्ति वाला, पंच
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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