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श्री संवेगरंगशाला करने वाले आचार्य, सूत्र का दान करने वाले उपाध्याय तथा शिवसाधक सर्व साधुओं को निश्चय सिद्धि के सुख साधक नमस्कार को करने में नित्य उद्यमी बन । क्योंकि यह नमस्कार संसार रूपी रण भूमि में गिरे हुए या फंसे हए को शरणभूत, असंख्य दुःखों का क्षय का कारण रूप और मोक्षपद का हेतु है
और कल्याण रूप कल्प वृक्ष का अवंध्य बीज है, संसार रूप हिमाचल के शिखर ऊपर ठण्डी दूर करने वाला सूर्य है और पाप रूप सॉं का नाश करने वाला गरूड़ है। दारिद्रता के कंद को मूल में से उखाड़ने वाला वराह की दाढ़ा है और प्रथम प्रगटता सम्यकत्व रत्न के लिए रोहणाचल की भूमि है सद्गति के आयुष्य के बन्धन रूपी वृक्ष के पुष्पनी विघ्न रहित उत्पत्ति है और विशद्धउत्तम धर्म की सिद्धि की प्राप्ति का निर्मल चिन्ह है। और यथा विधिपूर्वक सर्व प्रकार से आराधना कराने से इच्छित फल प्राप्त कराने वाला यह पन्च नमस्कार श्रेष्ठ मन्त्र समान है इसके प्रभाव से शत्रु भी मित्र बन जाता है, ताल पुट जहर भी अमृत बन जाता है भयंकर अटवी भी निवास स्थान के समान चित्त को आनन्द देता है। चोर भी अपना रक्षक बनते हैं, ग्रह अनुग्रह कारक बनते हैं अपशकन भी शुभशकन के फल को देने वाला है। माता के समान डाकिणी भी अल्पमात्र भी पीड़ा नहीं करती है और भयंकर मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र के प्रयोग भी उपद्रव करने में समर्थ नहीं होते हैं। पन्च नमस्कार मन्त्र के प्रभाव से अग्नि कमल के समूह समान, सिंह सियार के सदृश और जंगली हाथी भी मृग के बच्चे समान दिखता है। इसी कारण से देव, विद्याधर आदि भी उठते, बैठते, टकराते या गिरते इस नमस्कार को परम भक्ति से स्मरण करते हैं । वृद्धि होते श्रद्धा रूपी तेल युक्त मिथ्यात्व रूपी अन्धकार का नाशक और यह नमस्कार रूप श्रेष्ठ दीपक धन्यात्माओं के मनोमन्दिर में प्रकाश करता है। जिसके मन रूपी वन की झाड़ियों में नमस्कार रूपी केसरी सिंह का बच्चा क्रीड़ा करता है उसको अहित रूपी हाथियों के समूह का मिलन नहीं होता है। बेड़ियों के कठोर बन्धन वाली कैद और वज्र के पिंजरे में भी तब तक है कि इस नमस्कार रूपी श्रेष्ठ मन्त्र का जहाँ तक जाप नहीं किया। अहंकारी, दुष्ट, निर्दय और क्रूर दृष्टिवाला शत्रु भी तब तक शत्रु रहता है कि श्री नमस्कार मन्त्र का चिन्तन पूर्वक जहाँ तक उसका जाप नहीं करता है। इस मन्त्र का स्मरण करने वाले को मरण में, युद्ध भूमि में सुभट समूह का संगम होते और गाँव नगर आदि अन्य स्थान जाते सर्वत्र रक्षण और सम्मान होता
तथा देदीप्यमान मणि की कान्ति से व्याप्त विशाल फण वाला सो