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श्री संवेगरंगशाला
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का समूह है। मद्य से यादवों का भी नाश हुआ । ऐसा अति दारूण दोष को सुनकर, हे सुन्दर ! तत्त्वों के श्रोता तू मद्य नामक प्रमाद को अति दूर आजीवन तक कर दे । जिसने मद्य का त्याग किया है उसका धर्म हमेशा अखण्ड है, उसने ही सर्व दानों का अतुल फल प्राप्त किया है और उसने सर्व तीर्थों में स्नान किया है।
___ मांसाहार और उसके दोष :-अनेक उत्तम वस्तु मिलाने से उत्पन्न हुए जन्तु समूह के कारण जैसे मद्यपान करना पाप है वैसे मांस, मक्खन और मद्य भक्षण करना बहुत पाप है। सतत जीवोत्पत्ति होने से शिष्ट पुरुषों से निंद्य होने से और सम्पातिक (उड़कर आ गिरते) जीवों का विनाश होने से ये तीनों दुष्यरूप हैं । धर्म का सार जो दया है वह भी मांस भक्षण में कहाँ से हो सकती है ? यदि हो तो कहो। इसलिए धर्म बुद्धि वाले मांस का जीवन तक त्याग करते हैं। मनुष्यों के योग्य लोक में अन्य भी जीव की हिंसा किए बिना अत्यन्त स्वाद वाली, रस वाली, वर्ण, गंध, रस और स्पर्श से, स्वभाव से ही मधुर, पवित्र, स्वभव से ही सर्व इन्द्रियों को रुचिकर और पुरुषों के योग्य, उत्तम वस्तू होने पर भी नींदनीय मांस को खाने से क्या लाभ है ? हा ! उस मांस को धिक्कार हो ! कि जिसमें अति विश्वासू, दूसरे जीवों का स्थिर प्राणों का तर्क बिना विनाश होता है । क्योंकि मांस वृक्षों से उत्पन्न नहीं हुआ हो अथवा पुष्प, फल से नहीं होता है, जमीन से प्रगट नहीं होता है अथवा आकाश से बरसता नहीं है, परन्तु भयंकर जीव हिंसा से ही उत्पन्न होता है। तो कर परिणाम वाला जीव वध से उत्पन्न हुआ मांस को कौन निर्दय खायेगा? क्योंकि उसे खाकर शीघ्र मार्ग भ्रष्ट होता है। और भूख से जलते केवल जठर भरने योग्य यह एक ही शरीर के लिए अल्प सुख-स्वादार्थ मूर्ख मनुष्य जो अनेक जीवों का वध करता है तो स्वभाव से ही हाथी के कान समान चंचल जीवन क्या अन्य मांस पोषण से स्थिर रहने वाला है ? और ऐसा कभी भी विचार नहीं किया कि-मांस भी जीवों का अंग रूप होने पर वनस्पति आदि आहार के समान सज्जनों को भक्ष्य है ? क्योंकि भक्ष्य-अभक्ष्य की सारी व्यवस्था विशिष्ट लोककृत और शास्त्रकृत है। जीव का अंग रूप समान होने पर भी एक भक्ष्य है परन्तु दूसरी वह भक्ष्य नहीं है। यह बात अति प्रसिद्ध है कि-जीव का अंग रूप समान होने पर भी जैसे गाय का दूध पीया जाता है, वैसे उसका रुधिर नहीं पीया जाता। इस तरह अन्य वस्तुओं में भी जानना । इस तरह केवल जीव अंग की अपेक्षा तो गाय और कुत्ते के मांस का निषेध भी नहीं रुकेगा, क्योंकि वह भी जीव का अंग होने से वह भी भक्ष्य गिना जायेगा। और जीव