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________________ ४२० श्री संवेगरंगशाला ___उस पुत्र को अनिमेष दृष्टि से देखते राजा को उसके प्रति अनुभव से ही अपना पुत्र हो ऐसा राग प्रगट हुआ और पादपीठ के ऊपर बैठाकर मस्तक पर चुम्बन करके उसने कहा कि हे वत्स ! अपने घर के समान यहाँ प्रसन्नता से रहो। फिर राजा के पास बैठी रानी को सर्व आदरपूर्वक उस पुत्र को सौंपा और कहा कि मैं इस पुत्र को दे रहा हूँ। उसने स्वीकार किया और बाद में उस पुत्र ने विविध कलाओं का अभ्यास किया, क्रमशः वह देव के सौंदर्य को जीते ऐसा यौवनवय प्राप्त किया। उसने अपने अत्यन्त भजा बल से बड़े-बड़े मल्लों को जीता, इसलिए राजा ने उसका नाम मल्लदेव रखा। फिर उसे योग्य जानकर उसे अपने राज्य पद पर स्थापित किया। और स्वयं तापसी दीक्षा लेकर राजा बनवासी बना । मल्ल देव भी प्रबल भुजा बल से सीमा के सभी राजाओं को जीतकर असीम बल मद को धारण करता अपने राज्य का पालन करता था। एक समय उसने उद्घोषणा करवाई कि जो कोई मेरा प्रतिमल्ल बतलायेगा उसे मैं एक लाख मोहर अवश्य दूंगा। यह सुनकर एक जीणं कपड़े को धारण करते दुर्बल काया वाला परदेशी पुरुष ने राजा के पास आकर कहा कि-हे देव सूनो ! सारी दिगचक्र में परिभ्रमण करते मैंने पूर्व दिशा में वज्रधर नामक राजा को देखा है अप्रतिम प्रकृष्ट बल से शत्रु पक्ष को विजय करने वाला वह अपने आप 'त्रैलोकय वीर' कहलाता है। और वह नहीं सम्भव वाला असम्भवित नहीं है, क्योंकि उस राजा ने लालीमात्र से भी तमाचा मारने मात्र से निरंकुश हाथी भी वश होकर ठीक मार्ग पर आते हैं। ऐसा सुनकर उसे लाख सोना मोहर देकर अपने आदमी को आज्ञा दी कि-अरे ! उस राजा के पास जाकर ऐसा कहना कि-यदि किसी तरह दान का अर्थी भाट चारण ने 'त्रैलोक्य वीर' रूप में तेरी स्तुति की, तो तूने उसे क्यों नहीं रोका ? अथवा इस कीर्तन से क्या प्रयोजन है ? अब भी इस बिरूदावली को छोड़ दे। अन्यथा यह मैं आ रहा हैं, युद्ध के लिये तैयार हो जा। उस मनुष्य ने वहाँ जाकर उसी तरह सर्व ने उससे निवेदन किया। अतः भ्रकुटी चढ़ाकर भयंकर मुख वाले उस वज्रधर ने कहा कि-अरे ! वह तेरा राजा कौन है ? उसका नाम भी मैंने अभी ही जाना है, अथवा इस तरह कहने का उसे क्या अधिकार है ? अथवा अन्यायवाद से अभिमानी और असमर्थ पक्ष बल वाला है, वह रंक यदि मेरे युद्धरूपी अग्नि शिखा में पतंगा के समान उसकी दशा न हो तो मेरी लड़ाई नहीं कहना । इसलिए “अरे ! जल्दी जाओ और उसे भेज कि जिससे उसके विचार अनुसार करूंगा।" ऐसा सुनकर वापिस जाकर उस पुरुष ने मल्लदेव राजा
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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