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प्रकाशकीय सर्व गुणों में सर्व श्रेष्ठ गुण संवेग माना गया है। संवेग सहित सभी क्रिया सम्यग् क्रिया कहलाती हैं । संवेग के बिना सर्व साधना निष्फल है। संवेग के बिना कितनी भी त्याग, तप, अनुष्ठान, पूजा पाठ आदि किये जाएँ सब निष्फल हो जाते हैं, और सम्यक्त्व का स्वरूप संवेग है, मोक्ष के शुद्ध स्वभाव की रूचि संवेग है । मोक्ष की अभिलाषा वाला जीव ही मोक्ष प्राप्त कर सकता है। अतःसंवेग मोक्षमार्ग का बीज रूप है। उसको समझाने के लिए नाम सहश गुणों से भरा हुआ यह 'संवेग रंगशाला' नामक महान् ग्रन्थ है।
इस महाग्रन्थ में संवेग की प्राप्ति रक्षण और विकाश का सुन्दर सरल और सचोट उपाय बतलाया गया है । इसे भावपूर्वक एकाग्र चित्र से वाचन श्रवण करने वाला, पत्थर जैसा कठोर हृदय भी संवेग रंग में तन्लीन हो जायेगा । यह ग्रन्थ पद-पद पर वैराग्य भाव उत्पन्न करता है। अतः सर्पजन सुखकारी एवं हितकारी बनेगा ऐसा निर्विवादक है इसलिए यह महाग्रन्थ बार-बार विशेष मनन करने योग्य है।
इस महाग्रन्थ के रचियता परम महाउपकारी आचार्य श्री जिन चन्द सूरीश्वर जी महाराज हैं । यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित था। सर्वप्रथम वि० स० २०२६ में मूल प्राकृत भाषा में पत्राकार रूप में प्रकाशित हुआ फिर वि० स० २०३२ में गुजराती अनुवाद में छपा। अब वि० स० २०४१ में परम पूज्य महा तपस्वी अनेक तीर्थों द्वारक आचार्य देव श्री मद् विजय प्रकाशचन्द सूरीश्वर जी म० शिष्य रत्न पन्यास प्रवर पम विजय जी गणी के हिन्दी अनुवादित प्रकाशित कर रहे हैं। प्रेस कापी संशोधन आदि कार्य परम सुश्रावक श्री ताराचन्द जी दिल्ली वालों ने किया है। प्रकाशन आदि सारा काम नगीन प्रकाशन वाले श्री नगीन चन्द जी जैन ने किया है, तथा पुस्तक का शीघ्र मुद्रक करने का आर्यन प्रेस का सहयोग सराहनीय है । एवं इस महाग्रन्थ के प्रकाशन में जिन भाग्यशालियों ने उदारपूर्वक अर्थ सहयोग दिया है, उसके प्रति हम कृतज्ञ हैं उसकी शुभनामावली आगे दी है।
इस ग्रन्थराज का वाचन, श्रवण, मनन कर प्रत्येक जीवात्मा संबेग रंग की वृद्धि करे, और परम पद मोक्षसुख के भोक्ता बने यही एक शुभाभिलाषा है।
आपका श्री निग्रन्थ साहित्य प्रकाशन संघ ज्ञान चन्द जैन (हलवाई)
सदर मेरठ। - जय किशन जैन
मेरठ।