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________________ श्री संवेगरंगशाला ३५५ कहूँ ? पुत्र ने कहा कि -माता ! रो मत, मैं स्वयं प्रभात में थावर के साथ गोकुल जाऊँगा, आप शोक को छोड़ दो। ऐसा सुनकर प्रसन्न हुई वह मौन धारण कर रही, फिर दूसरे दिन घोड़े के ऊपर बैठकर वह थावर के साथ चला । चलते हुये मार्ग में थावर मन में विचार करने लगा कि - यदि किसी तरह मुनिचन्द्र आगे चले तो तलवार से मैं उसे जल्दी मार दूंगा । मुनिचन्द्र भी बहन के कथन का विचार करते अप्रमत्त बनकर मार्ग में उसके साथ में ही चलने लगा । फिर विषम मार्ग आया तब घोड़े को चाबुक का प्रहार किया और घोड़ा आगे चलने लगा, जब मुनिचन्द्र शंकापूर्वक जाने लगा उस समय पीछे रहे वह उसको मारने के लिये तलवार म्यान में से खींचने लगा । मुनिचंद्र ने उसी तरह वैसी ही परछायी देखी, इससे उसने घोड़े को तेजी से दौड़ाया और तलवार का निशाना निश्फल किया । दोनों गोकुल में पहुँचे और गोकुल के रक्षकों ने उनका सत्कार सेवा की, फिर अन्य - अन्य बातें करते सूर्यास्त तक वहीं रहे । थावर उसे मारने के लिए उपायों का विचार करता है, निश्चय किया कि रात में इसे अवश्य मार दूंगा । फिर रात्री में जब पलंग सोने के लिये घर में रखा तब मुनिचन्द्र ने कहा कि- आज मैं बहुत समय के बाद यहाँ आया हूँ, इसलिये इस पलंग को गायों के बाड़े में रखो कि जिससे वहाँ रहे हुए सर्व गाय, भैंस के प्रत्येक समूह को देख सकूं । नौकरों ने पलंग को उसी तरह रख दिया। फिर मुनिचन्द्र विचार करता है कि – अब मैं थावर नौकर की सम्पूर्ण प्रवृत्ति आज देखूं । उसको अकेला सोया हुआ देखकर 'अब मैं रूकावट बिना सुखपूर्वक मार दूंगा ।' ऐसा मानकर थावर भी मन में प्रसन्न हुआ । फिर जब लोग सो गये तब मुनिचन्द्र तीक्ष्ण तलवार लेकर अपने पलंग पर लकड़ी और ऊपर वस्त्र ढककर देखने वाले को पुरुष दिखे, इस तरह रखकर थावर का दुष्ट आचरण देखने के लिए अत्यन्त सावधान मन वाला, मौन धारण करके एकान्त में छुप गया । थोड़े समय के बाद विश्वास होते थावर ने आकर जब उस पलंग पर प्रहार किया, उसी समय मुनिचन्द्र ने तलवार से प्रहार किया, इससे वह मर गया । उसकी बात छुपाने के लिये सारे पशुओं के समूह को बाड़े से बाहर लाकर मुनिचन्द्र बोलने लगा कि - ' अरे ! भाईयों ! दौड़ो, दौड़ो ! चोरों ने गायों का हरण किया है और थावर को मार दिया।' इससे सर्वत्र पुरुष दौड़े। वे गायों को वापस ले आये और ऐसा मानने लगे कि - चोर भाग गये हैं । इसके बाद थावर का सारा मृत कार्य किया ।
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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