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श्री संवेगरंगशाला
किस तरह शिक्षा दे उसे कहते हैं-बड़े गुण की समूह की वृद्धि और पुष्टि द्वारा उसमें से कुबुद्धि रूप मैल धो गया हो । पण्डित के मन को सन्तोष देने वाले प्रशम रस को बहती, अति स्नेह से युक्त, सन्देह बिना की, गम्भीर अर्थ युक्त, संसार प्रति वैराग्य प्रकट करने वाली, पाप रहित, मोह, अज्ञान रहित, कथनीय विषय को ग्रहण करने वाली, दुराग्रह की नाशक, मनरूपी अश्व को धर्म की चाबुक समान, मधुरता से क्षीर, मद की महिमा को भी जीतने वाली, अति मधुर और सुनने वाले के अस्थि-मज्जा को भी रंग दे ऐसी हित शिक्षा नये आचार्य को और गच्छ को दे वह इस प्रकार है
हे देवानुप्रिय ! तुम जगत में धन्य हो, कि जो इस जगत में अति दुर्लभ आर्य देश में मनुष्य जीवन प्राप्त किया है। और स्नेही जन, स्वजन, नौकर आदि मनुष्यों से भरे हुए, उत्तम कुल में जन्म, प्रशस्त जाति तथा सुन्दर रूप, सुन्दर बल, आरोग्यता, और लम्बा आयुष्य, विज्ञान सद्धर्ममें बुद्धि, सम्यक्त्व, और अखण्ड निरतिचार शील को तुमने प्राप्त किया है। ऐसा पुण्य समूह निष्पुण्यक को नहीं मिल सकता है। इस तरह सर्व की सामान्य रूप में प्रशंसा करके उसके बाद सर्व प्रथम आचार्य को शिक्षा दे, जैसे कि-हे सत्त्पुरुष ! तू संसार समुद्र में तारने वाली उत्तम धर्मरूपी नाव का कर्णधार है, मोक्ष मार्ग में सार्थवाह है एवं अज्ञान से अन्धे जीवों के नेत्र समान है। अशरण भव्य जीवों का शरण है और अनाथों का नाथ है, इसलिए हे सत्त्पुरुष! तुझे गच्छ के महान भार में जोड़ा है। हे धीर ! सर्वोत्तम तीर्थंकर नाम कर्म फल का जनक यह सर्वोत्तम आचार्य (सूरि) पद को, अक्षय सुख रूप मोक्ष को प्राप्त करने के लिए छत्तीस गुणरूपी धर्म रथ की धुरा को धारण करने में धीर, वृषभ समान,
और पुरुषों में सिंह सदृश श्री गौतम गणधर आदि ने वहन किया है, जिससे निर्मल बुद्धि तुझे भी उसे दृढ़ रूप धारण करना । क्योंकि धन्य पुरुषों को यह पद दिया जाता है। धन्य पुरुष इसका पार प्राप्त कर सकते हैं, और इसका पार पाकर वे दुःखों का पार-अन्त को प्राप्त करते हैं। इससे भी श्रेष्ठ अन्य पद समग्र जगत में भी नहीं है, क्योंकि काल दोष से श्री जैनेश्वरों का व्युच्छेद होने से वर्तमान काल में शासन का प्रकाश-प्रभावना करने वाला यह पद है। इससे किसी ऐहिक आशा बिना प्रतिदिन श्री जैनागम के अनुसार विविध प्रकार के शिष्य समूह को योग्यता अनुसार विद्वता का व्याख्यान करना कि जिससे परलोक में उद्यत धीर पुरुषों ने तेरे ऊपर आरोपित किया हुआ इस गणधर (आचार्य) पद को तू निस्तार प्राप्त कर सफल करना। क्योंकि जन्म, जरा, मरण से भयं विशाल संसार रूपी अटवी में परिभ्रमण करने से थके हए,