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श्री संवेगरंगशाला
जूं दिखे या उत्पन्न हो अथवा मक्खी शरीर पर बैठे या पीछे घूमे उसे शीघ्रमेव काल भक्षण करने वाला है । जो मनुष्य सर्वथा बादल बिना भी आकाश में बिजली अथवा इन्द्र धनुष्य को देखता है या गर्जना के शब्द सुनता है वह शीघ्र यम के घर जाता है । कुआँ, उल्लू या कंक पक्षी ( जिसके पंख बाण के पंख बलते हैं वह ) इत्यादि मांसभक्षी पक्षी सहसा जिसके मस्तक के ऊपर आकर बैठे तो वह थोड़े दिनों में यम के घर जायेगा । सूर्य, चन्द्र और ताराओं के समूह को जो निस्तेज देखता है वह एक वर्ष तक जीता है और जो सर्वथा नहीं देखता, वह जीये तो भी छह महीने तक ही जीता है । तथा जो सूर्य या चन्द्र के बिम्ब को अकस्मात् नीचे गिरते देखे तो उसका आयुष्य निःसंशय बारह दिन का जानना । और जो दो सूर्य को देखे तो वह तीन महीने में मर जायेगा । और सूर्य बिम्ब को आकाश में चूमते हुये देखे तो उसका शीघ्र विनाश होगा अथवा सूर्य को और स्वयं को जो एक साथ देखे उसका आयुष्य चार दिन, और जो चारों दिशा में सूर्य के बिम्बों को एक साथ देखे उसका आयुष्य चार घड़ी का जानना । अथवा अकस्मात् सूर्य के समग्र बिम्ब को जो छिद्रों वाला देखता है वह निश्चित दस दिन में स्वर्ग के मार्ग में चला जाता है । सर्व पदार्थों के समूह को जो पीला देखता है वह तीन दिन जीता है, और जिसकी विष्टा काली और खण्डित होती है वह शीघ्र मरता है । जिसने नेत्र का लक्ष्य ऊँचा रखा हो वह अपनी दो भृकुटियों को नहीं देखे तो वह नौ दिन में मरता है । ललाट पर हाथ स्थापित कर देखे तो यदि कलाई मूल स्वरूप देखे, अति कृशतर- पतला नहीं देखे वह भी शीघ्र मरण-शरण स्वीकार करेगा । अंगुली के अन्तिम विभाग से नेत्रों के अन्तिम विभाग को दबाकर देखे यदि अपनी आँखों के अन्दर ज्योति को नहीं देखे वह अवश्य तीन दिन में यम के मुख में जायेगा । यदि अपने हाथ की अंगुली से ढांकने पर बाँयी आँख के नीचे प्रकाश दिखाई न दे तो छह महीने में मृत्यु होती है, भृकुटि का विभाग प्रकाश नहीं दिखे तो तीन महीने में, आँख के कान की ओर प्रकाश नहीं दिखाई दे तो दो महीने में और नाक की ओर प्रकाश दिखाई न दे तो एक महीने में मृत्यु होती है । और इसी क्रमानुसार ऊपर, नीचे, कान, नाक और प्रकाश नहीं दिखे तो उसका आयुष्य क्रमशः दस, पाँच, तीन और दो दिन का जानना । (यह दोनों बातें योगशास्त्र प्रकाश ५ श्लोक १२२ और १२३ में आई हैं) और अन्य लक्ष्य को छोड़कर नेत्रों के बरूनी को नीचे वड़बाकर अति मन्द, नीचे स्थिर पुतली वाले दोनों नेत्रों को नासिका के अन्तिम स्थान पर जैसे स्थिर हो इस तरह निष्चत जो अपनी नासिका देखते हुए भी नहीं दिखे तो वह पाँच दिन में