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श्री संवेगरंगशाला
१६३ इधर वह महात्मा वज्र मित्र की खोज करके उसके विरहाग्नि से पीड़ित शरीर वाला, दीन मन वाला, महामुसीबत से कुसुमस्थल नगर पहुँचा। वहाँ क्षोमिल के परलोक की विधि की और रत्नों को बेचकर प्रचुर समृद्धिशाली बना। फिर संसार सेवन करते उसे कालक्रम से अत्यन्त प्रशस्त दिन पूत्र का जन्म हआ। उसका नाम 'केसरी' रखा। कर्मोदय की अनुकूलता से अल्प प्रयत्न से भी बहत धन सम्पत्ति एकत्रित हुई और स्वजन भी अनुकूल हये। उसके बाद उसने चिन्तन किया कि इस संसार में निश्चय लक्ष्मी बिना का मनुष्य अल्पमात्र वजन वाला अति हल्का काश वनस्पति के पुष्प के समान सर्व प्रकार से नीचता को प्राप्त करता है। इसलिये इसके बाद मुझे धन का रक्षण अपने जीव के समान करना चाहिए। क्योंकि इसके बिना निश्चय पुत्र भी पराभव करता है । ऐसा चिन्तन करके पुत्र को भी दूर रखकर सारा धन का संग्रह आदरपूर्वक अपने हाथ से जमीन में गाढ़ा। फिर अन्य किसी दिन सूत्र अर्थ में पारंगत विचित्र तप से सूखे शरीर वाला वह क्षोमिल नामक मुनिवर अनियत विहार चर्या करते हुए वहाँ आये । वज्र ने उनको वन्दन किया और महामुश्किल से पहिचाना । अचानक उनके आगमन से आनन्द के आँसू बहाते उसने सत्कारपूर्वक पूछा-हे भगवन्त ! यह आपका वृत्तान्त क्या है ? पापी मैंने तो कई स्थानों पर आपकी खोज करने पर भी नहीं मिलने से आपकी मृत्यु हो गई है ऐसी कल्पना की थी। तब स्वच्छ हृदय वाले मुनि ने अपनी बात को निष्कपट भाव से जैसे बनी थी वैसे विस्तारपूर्वक कहा । उसे सुनकर वज्र परम विस्मय को प्राप्त कर और मुनि ने विविध युक्त वाले वचनों से उसे प्रतिबोध किया। इससे संसार प्रति उद्वेग होने से उसने सर्वज्ञ कथित स्वर्ग मोक्ष के हेतुभूत गृहस्थ धर्म को स्वीकार किया। उसे प्रयत्नपूर्वक निरतिचार पालन करने लगा और अत्यन्त भक्ति वाला वह उत्तम साधु वर्ग की प्रतिदिन सेवा करने लगा। वृद्धावस्था होने पर उसने अपने स्थान पर केसरी पुत्र को स्थापन किया और स्वयं श्रेष्ठ सविशेष धर्म कार्यों को करने लगा। परन्तु लम्बे प्रयास से प्राप्त किया जमीन में गाढ़ा हुआ गुप्त निधान को पूछने पर भी मूळवश पुत्र को नहीं कहता है । अपना आयुष्य को अति अल्प जानता हुआ भी हमेशा 'आज कहूँगा, कल कहूँगा' ऐसा कहता है और प्राणियों के उपद्रव बिना निर्जीव घर के एक विभाग में आराधना की अभिलाषा से वह पौषध करने द्वारा विविध परिकर्मणा अर्थात् चारित्र के अभ्यास को करता है। पुत्र भी पिता को अति वृद्ध समझकर बार-बार धन के विषय में पूछता है और पिता भी सामायिक में स्थिर रहता है।