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आवस्सय चुण्णीए, जं भणियं सेसया जहिच्छाए । तेणं उज्जिताइवि, अहिगारा सुअमया चेव ॥ ४७ ॥
अन्वयः - आवस्सय चुन्नीए जं भणियं अहिगारा सुय - मया चेव ||४७ ||
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शब्दार्थ : :- आवस्सय = आवश्यक, चुण्णी चूर्णि में प्राकृत भाषामय - प्राचीन टीका, आवस्सय चुण्णीए = आवश्यक चूर्णि में, जं= जो, भणियं = कहा है, सेसया = शेष, जहिच्छाए = ईच्छापूर्वक, सुयमया - शास्त्रमय, शास्त्र आज्ञा के अनुसार
सेसया जहिच्छाए तेणं - उज्जिताइवि
गाथार्थ :- आवश्यक सूत्र की चूणिमें कहा है कि “शेष अधिकारों को स्वेच्छापूर्वक करने के लिए समजना" जिससे "उज्जित सेल" - विगेरे अधिकार भी श्रुत सम्मत हैं ।
॥४७॥
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विशेषार्थ :- श्रुतमय = आज्ञासिद्ध, शास्त्रसम्मत
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बीओ सुमत्थया - ssई, अन्थओ वन्निओ तहिं चैव । सक थयंते पढिओ दव्वा ऽरिह ऽवसरि पयइत्थो ||४८ ॥
(अन्वयः - बीओ तहिं चैव सुयत्थयाइ अत्थओ वण्णिओ दव्वा - रिह - S वसरि सक्कत्थयंते पयइत्थो पढिओ ॥ ४८ ॥
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शब्दार्थ :- बीओ = दूसरा, सुयत्थया sss = श्रुतस्तव की आदि में, अत्थओ अर्थसे, वण्णिओ = वर्णन किया है, तहिं उसमें, चेव = पर, सक्क थयंते शक्रस्तव के अंतमें, पढिओ = कहा है, दव्वाऽरिहवसरि= द्रव्य अरिहंतके प्रसंग पर, पयडत्यो : साक्षात् शब्दों से, प्रगट अर्थसे
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गाथार्थ :- दूसरों भी वहीं (आवश्यक चूर्णिमें) पर श्रुतस्तव के प्रारंभ में अर्थसे कहा है। शक्रस्तव के बादमें द्रव्य अरिहंत की स्तवना प्रसंग पर साक्षात् शब्दों से है उच्चारा है ( बोला है ) ||४८||