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________________ की आराधना के लिए आत्मधर्म को प्रगट करने वाली प्रतिज्ञा का त्याग तुच्छ लाभ के लिए नहीं करना चाहिये। तथा प्रत्याख्यान के ज्ञाता अज्ञाता के संबंध में चतुर्भगी इस प्रकार है। .१ प्रत्याख्यान करने वाला ज्ञाता और कराने वाला ज्ञाता २. प्रत्याख्यान करने वाला ज्ञाता और कराने वाला अज्ञाता ३. प्रत्याख्यान करने वाला अज्ञाता और कराने वाला ज्ञाता ४ प्रत्याख्यान करने वाला अज्ञाता और कराने वाला अज्ञाता इनमें प्रथम तीन विकल्प शुध्ध हैं, चौथा विकल्प अशुध्ध है। १. प्रथम तीन विकल्प को शुध्ध हैं, कहा गया है, कारण कि प्रत्याख्यान के आगार-काल विगेरे के ज्ञाता प्रत्याख्यान करने को और कराने वाले भी ज्ञाता हो तो परम शुध्ध है। .. २. परन्तु गुरु यदि अल्प क्षयोपशम वाले अथवा लघु वय वाले होने से पच्च० के स्वरुप का ज्ञान न हो, फिरभी श्रध्धालु श्रावक अथवा शिष्य गुरु के बहुमान के लिए गुरु की साक्षी से ही पच्चक्खाण उच्चरना चाहिये। इस प्रकार का शास्त्र विधि है, जिससे अज्ञाता गुरु से भी पच्चक्खाण उच्चरने पर भी स्वयं ज्ञाता होने के कारण लिये हुए प्रत्याख्यान का यथार्थ पालन कर सकता है। अतः दूसरा विकल्प भी शुध्ध है। ३. तथा लेने वाला प्रत्याख्यान का अज्ञाता हों और उच्चराने वाले गुरु ज्ञाता हों तो बादमें वह पच्च० का यथार्थ पालन कर सकता है, अतः तीसरा विकल्प भी शुध्ध है, ४. लेकिन चतुर्थ विकल्प वाले तो दोनो ही अज्ञाता होने के कारण प्रत्याख्यान का स्वरूप की जान कारी न होने से यथार्थ पालन भी.संभव नहीं ! अतः चतुर्थ विकल्प स्पष्ट ज्ञात होता है अशुध्ध ही है । इस प्रकार चतुर्भगी का स्वरुप जानकर प्रत्याख्यान करने वाले को प्रत्याख्यान का स्वरुप समजकर या गुरु से स्वरुप जानकर 'गुरुसे पच्चक्खाण उच्चरना चाहिये । : अवतरणः किया हुआ प्रत्याख्यान जिस छ प्रकारों से शुध्ध होता है, वहछ प्रकारकी शुध्धि का ८ वा दार इस गाथा के द्वारा दर्शाया गया है । १. इस अर्थ उपर से पच्चकखाण के स्वरूप समजा जावे तो ही पच्चकखाण करना, । नही तो नही इस तरह बोलनेवाले प्रत्याख्यान धर्म के निषेधक और विराधक जाणना | Gambhisaninik -200)
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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