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________________ . विगेरे नीवियाते में गीने जाते है। चूटे ऊपर से नीचे उतारने के बाद एक बूंद भी घी डालने परनीविया में काल नही आते हैं। ५. पोतकृत पूइला :- तवी में से जला हुआ घी निकालने बाद उसी तवी में पूड़ी अथवा खट्टी पूड़ी घी या तेल का पोता देकर बनाने में आती है उसे पोतकृत पूड़ला कहा जाता है। अथवा कोरी तवी या तवे में वर्तमान मे बनाये जाने वाले खट्टे-मीठे पूड़े - पूड़ीयाँ - पोतकृत पूड़ले रूप पाँचवा नीवियाता है। चूल्हे से तवी नीचे उतारने के बाद उसमे घी की एक बूंद भी नही डालना इस प्रकार 'पाँच नीवियाते पकवान्न विगई के हैं। 'प्रश्न:- कडाह विगई ( पकवान के) अंतिम तीन नीवियाते में तलने की क्रिया नही • होती है। तो उन्हे कड़ाह विगई के नीवियाते में क्यों गिनना ? अर्थात पकवान्न याने तरी हुऐ पदार्थ येबात इन तीन निव्रियातों में नही घटती । ? उत्तर :- यहाँ पकवान्न याने 'घी अथवा तेल विगेरे स्नेह (चीकटे) द्रव्यो में तरीहुई या सेकी हुई वस्तु 'ऐसा अर्थ घटित है। और कडाह याने केवल कडाही ही नही लेकिन कड़ाई के साथर तवी तवा तपेली इत्यादि भी समजना । अतः घी अथवा तेल में तली हुई या सेकी हुई वस्तुएँ - उसे पक्वान्न विगई कहाजाता है, और वही वस्तु कड़ाई विगेरे में तरी या सेकी जाते है, तो उसे दूसरे नाम से कड़ाह विगई कहा जाता है। अथवा घी और तेलादि स्निग्ध द्रव्यो के अवगाहने डबोने से (जो वस्तुएँ पक्व होती है उसे अवगाहिम कहा जाता है, ये भी पकवान्न विगई का ही नाम है। इस अर्थ के आधार पर अंतिम तीन नीविया के पदार्थ डूबे वैसे घी तेल में नही तराते है, फिर भी चूस सके वैसे घी-तेक में तरे या सेके जाते है। इसी कारण उचित मात्रा में घी डालकर बनाई रोटी को पकवान्न नीवियाते में ही गिना जाता है । चातुर्मासी प्रतिक्रमण में पकवान्न का काल कहने में आता है। वहा पकवान्ने शब्दसे बहुत ही तेल में तली हुई चीजोका काल कहा जाता है ऐसा नही है। लेकिन शेकने योग्य | चीजो को पकवान्न मानकर उनका काल कहा जाता है । और पोतादिया 1 पूडला को भी पूडला रोका गया ऐसा नही कहते है। लेकिन पूडले तले है ऐसा कहते है। इसलिए डूबे ऐसे घी में तला और अल्प घी से तला हुआ या शेका हुआ ऐसा बोलने की पध्धति है । इस तरह ये तिनो निवियाते पकवान्न के निवियाते है । 186
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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