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... शब्दार्थ :- निब्भंजण निर्भजन घृत, विसंदण विस्पंदन घृत, पक्क़-पकाई गयी, ओसही औषधि, तरिय-तरी, पक्क़घयं-पकायाहुआ घृत, दहिए-दहि में , सिहरिणि शिखंड, घोल-छानाहुआ दहि. .... गाथार्थ :-'पक्कवान तरलेने के बाद कडाई में बचा हुआ घृत उसे निर्भजन | तथा दहि की तरी और आटा इन दो को मिलाकर बनाइ हुइ कुलेर भो उसे विस्पंदन',
औषधि (वनस्पति विशेष ) मिलाकर गरम किये हुए घृत की तरी उसे पक्वौषधि तरित 'घृतको गरम करने पर उस पर आने वाला मेल उसे किहि, और आंवले विगेरे औषधि डालकर पकाया हुआ घृत उसे पढ़वघृत कहा जाता है (इस प्रकार घृत के पाँच निवियाते (पाच प्रकार का अविकृत घी ) निवि में कल्पते हैं । 'तथा सिझे हुए चावल मिश्रित दहि उसे करम्ब, दहिका पानी निकालने के बाद शेष मावे को अथवा दहि में शक्कर मिलाकर | वस्त्र से छानकर पानी निकाला हुआ शेष दहि उसे शिखरिणि शिखंड, 'नमक डालकर मथा हुआ दहि उसे 'सलवण दहि, वस्त्रसे छाना हुआ दहि उसे घोल और उस घोल में वडे डाले हों उसे घोलवडा अथवा घोल डालकर बनाये हुए वडे उसे भी घोलवडा कहा जाता है । (निवि के प्रत्याख्यान में ये दहि के पाँच निवियाते (= दहि की पांच अविगई ) निवि के प्रत्याख्यान में कल्पते हैं)।
भावार्थ :- घृत तथा दहि के पांच निवियाते भी प्राय : योग वहन करने वाले मुनि भगवन्तो को तथा श्रावकों को उपधान में नीवि के प्रत्याख्यान मे कल्पते हैं । अन्य नीवि में नही कल्पते है । अवतरण :- इस गाथा में तेल व गुड के पाँच पाँच नीवियाते दर्शाये गये हैं।
तिलकुहि निब्भंजण पळतलि पक्कुसहितरिय तिल्लमली । - सवकर गुलवाणय, पाय खंड अध्यकढि इक्खुरसो ॥३४॥ शब्दार्थ :- अर्थ के अनुसार सुगम है । १. सिध्धान्त में अर्थ जले हुए घृत में तंदूल डालकर बनाये हुए भोजन विशेष को विस्पंदन कहा गया है। १. शास्त्र में इसे व्याजिका खाट कहा गया है । अतः व्यवहार भाषा में इसे रायता अथवा दहिका मट्टा कहा जाता है । वह यही है, और उसमें सांगरी विगेरे का प्रयोग न किया हो फिरभी नीवियाता कहा जाता है ।