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________________ १८. अलेवेण वा :- शुध्द जल के अभाव में (गाढ कारण से ) कांजी नीतारा हुआ छास का पानी, इत्यादि अलेपकृत् जल पिने से तिविहार उपवासादि के प्रत्याख्यान का भंग न हो, इसके कारण "अलेवेण वा " आगार रखा गया है। कांजी विगेरे का पानी जिस बर्तन रखा गया हो, उसे अलेप (चिकनाई विना का) रखता है, अतः कांजी विगेरे के जल को अपकृत कहा गया है । (यहाँ अलेप अर्थात् अल्प लेप ऐसा अर्थ संभवित होता है) १९. अच्छेण वा :- अच्छ= 1 = निर्मल उष्ण जल, जिस जल को तीन बार उकाले लेकर सर्वथा अचित्त किया हो, जिसे पिने से तिविहार उपवासादि का भंग नही होता है, इसी कारण अच्छेण वा " आगार कहा गया है । (तिविहार उपवास में हो सके वहाँ तक उष्ण जल ही पिना चाहिये । शेष पाँच आगार वाले जल अपवाद से गाढ कारण से पिना है। गृहस्थ को तो विशेषतः उष्ण जल ही पिना चाहिये । अतः शेष पाँच आगार गृहस्थों के लिए नही हैं, मुनि भगवन्तों के लिए ही है। ) तथा फलादिके धोवन अथवा फलादि के निर्मल 'अचित्त जल भी इस आगार में गिने जाते है । 13 २०. बहुलेवेण वाः - तिल का धोवण तथा तंदूल का धोवण विगेरे बहुलजल कहलाता है, वैसा बहुलजल पीने से प्रत्याख्यान का भंग न हो इस कारण से "बहुलेवेण वा " आगार रखा गया है। २१. ससित्थेण वाः- सित्थ अनाज का दाना उससे ( स ) सहित जो जल वह ससित्थ जल कहलाता है । याने सिजोये हुए अनाज के दानो का नरम भाग रह गया हो वैसा ओसामण विगेरे जल पिने से तथा तिल का धोवण, चावल का धोवण, विगेरे में तिल विगेरे का दाना रह गया हो वैसा पानी पीने से प्रत्याख्यान का भंग न हो, इस कारण से J ?. अच्छमुष्णजलमुत्कालितमन्यदपि निर्मलं अवचूरी विगेरे के पाठ में उष्णजल के अलावा भी अन्य निर्मल जल कहे गये हैं और ज्ञान विमलसूरि कृत बालावबोध में फलादि के धोवण को इसमे गिना है। इसलिए यहाँ फलके जल को भी "अच्छेण वा " आगार में कहा है । २. कच्चा पाणी प्रायः करके कबहुत सचित और थोडा अचितऐसा मिश्र होता है। एक वार उबाला हुआ पाणी बहुत सचित है, दोवार उबाला हुआ बहुत अचित और अल्प सचित ऐसा मिश्रित है, और तीन उकाला वाला पाणी सर्वथा अचित होता है, इस लिए व्रतधारी ओ को तीन उकालावाला पाणी पीने योग्य है। जैसा तैसा उकाला हुआ पाणी व्रत में दूषित होता है । 177
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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