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________________ शब्दार्थ :- लेवाड़ = लेपकृत, लेवेण वा आगार, आयाम आचाम्ल, ओसामण, इयर इतर, अलेपकृत अलेवेण वा आगार, सोवीरकाजी, सोवीर, अच्छ= निर्मल, अच्छेण वा आगार, उसिण= उष्णं, गरम किया हुआ, उस्सेइम = उत्स्वेदिम, आटे का धोवन, धोयण- ( चावल विगेरे का) धोवन, बहुलबहुल, बहुलेवेण वा आगार, ससित्थदाने सहित, ससित्थेण वा आगार, इयर = उससे इतर, असित्थेण वा आगार, सित्थविणा = आटे का मिश्रण रहित जल, I 33 गाथार्थ :- ओसामण विगेरे का पानी लेपकृत कहाजाता है । जिससे ( उसकी छूटवाला) “लेवेण वा ” आगार है । कांजी विगेरे अलेपकृत पानी है, अतः “अलेवेण वा आगार है । उष्ण जल निर्मल जल है, उसकी "अच्छेण वा छूटवाला आगार है। चावल विगेरे का धोयण बहुल कहा जाता है, उसकी छूटवाला "बहुलेवेण वा " आगार है । आटे का धोवन ससित्थ (दाने वाला ) होता है, उसकी छूटवाला "ससित्थेण वा " आगार है । और उससे विपरित " असित्थेण वा " आगार है | ||२८|| भावार्थ: १७. लेवेण वा :- तिविहार के प्रत्याख्यान में (अशन-पान - खादिम स्वादिम इन ४ प्रकार के आहार में से ) मात्र पानी ही कल्पता है । और शेष तीन आहार का त्याग होता है। यदि कभी कभार शुध्द उष्ण जल न मिले और 'ओसामण का पानी, खजुर 'का, ईमली का, या द्राक्ष विगेरे का लेपकृत 'पानी मिले कि जिसमें त्याग किये हुए पदार्थों के (याने अशन, खादिम व स्वादिम पदार्थों के) रजकण मिश्रित हों तो कारण युक्त ऐसा लेपकृत पानी पाने से (तिविहार उपवास के) प्रत्याख्यान का भंग नही है उसकी छूटवाला लेवेण वा आगार है। द्राक्षादि का पानी बर्तन में रखने से उसे चिकना - लेपवाला बनाता है, अतः उस बर्तन के पानी को शास्त्र में लेपकृत कहा है । १. सिजोये हुए अनाज का कण रहित डहोला न हो ऐसा नीतरा हुआ जल । २. गृहस्थद्वारा किये गये खजुर, द्राक्षादि का पानी, जब उसके कण नीचे स्थिर हो जाये, चबाने जैसा भाग न आवे वैसा नीतारा हुआ पानी लेनाकल्पता है, अथवा खजुरादि का जल बनाकर कपड़े से छान लिया हो, वैसा पानी नीतरे पानी रुप कल्पता है, ऐसा संभव है । 176
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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