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________________ अवतरण :- इस गाथा में ५-६-७-८ वें आगार का अर्थ दर्शाया गया है। साहु वयण उग्घाड़ा - पोरिसि तणुसुत्थया समाहित्ति । संघाइकज्ज महत्तर, गिहत्यबन्दाइ सागारी ॥२५॥ शब्दार्थ:- तणु - शरीर की, सुत्थया स्वस्थाता, रोग की शांति, समाहिसमाधि (5) ति = वह, कज्ज = कार्य, बन्दाइ = बन्दी विगेरे । गाथार्थ:- "उग्घाड़ा पोरिसी” इस प्रकार मुनि का वचन सुनकर अपूर्ण काल में (पोरिसी पच्च०) प्रत्याख्यान पारना । वह साहुवयणं आगार कहलाता है । शरीरादि की स्वस्थता के लिए जो आगार उसे सव्वसमाहि वत्तिया गारेणं आगार कहा जाता है । संघ विगेरे के महान कार्य वाला (=प्रयोजन वाला) अथवा महानिर्जरा वाला आगार उसे महत्तरागार आगार कहा जाता है, और गृहस्थ तथा बन्दी विगैरे संबंधि आगार उसे सागारी आगार कहाजाता है। ॥२५॥ भावार्थ :- १. साहुवयणेणं :- सूर्योदय से ६ घड़ी बाद प्रथम 'सूत्रपोरिसी पूर्ण होती है उस समय पोरिसी का काल पादोनपोरिसी (पोने भाग की पोरिसी) जितना हुआ होता है । उस समय मुनिभगवन्त “उग्घाड़ा पोरिसी या" बहु पडिपुन्ना पोरिसी बोलकर | मुहपत्ति की प्रतिलोखना करते हैं । ऐसी साधु समाचारी (=मुनि का विधिमार्ग) है इस उग्घाड़ा पोरिसी शब्द से पोरिसी को प्रत्याख्यान का समय हो गया है ऐसा जानकर कोई पच्चवखाण पारे तो पोरिसी के पच्चक्खाण का भंग नहीं होता है । इसी कारण से साहुवयणेणं आगार रखने में आता है.। (साहुवयणेणं याने उग्घाइ पोरिसी ऐसा साधु का वचन सुनने से) १. प्रथम ६ घड़ी तक सूत्र पढ़ सकते हैं । अतः प्रथम सूत्रपोरिसी, और बाद की ६ घड़ी में अर्थ पढा जता है, अतः दूसरी अर्थपोरिसी, इसी कारण से मुनिमहाराज प्रथम पादोन | पोरिसी अर्थात् सूत्रपोरिसी में प्रथम सूत्र का व्याख्यान पढते हैं, सूत्र पोरिसी पूर्ण होने पर मुहपत्ति की प्रतिलेखना कर अर्थ का याने चरित्र विगेरे का दूसरा व्याख्यान पढ़ते हैं। इन दो व्याख्यान के बीच साधु साध्वी और पौषधधारी श्रावक सूत्र पोरिसी पूर्ण होने की मुहपत्ति पहिलेते हैं । और श्राविकाएँ विशेष स्वाध्याय अर्थ उस समय गहुँलि गाती है । ___२. पोरिसी का काल सूर्योदय से भिन्न भिन्न याने अनियत प्रमाण वाला है। और सूत्रपोरिसी का (=पादोन पोरिसी का) काल तो सदैव सूर्योदय से ६ घड़ी का नियत प्रमाण वाला होता है। अतः “उग्घाड़ा पोरिसी” ये वचन पोरिसी के प्रत्याख्यान वाले को भ्रान्ति उत्पन्न करता है । और इसीकारण अपूर्ण काल में पच्चवखाण पारने का कारण बनता है । -169)
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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