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तथा “अन्नत्य” (= छोड़कर) इस शब्द को जिस प्रकार इअनाभोग के साथ जोड़ा है, वैसे ही ये शब्द सहसागार विगेरे आगारों के साथमें भी संबंध वाला है। जिससे अन्नत्थ सहसागारेणं - अन्नत्थ महत्तरागारेणं अन्नत्थ सव्वसमाहि बत्तिया गारेणं विगरे सर्व आगारों में अन्नत्थं शब्द का अनुसरण है। लेकिन उच्चरते समय "उग्गए सूरे या सूरे उग्गए" के पाठवत् और अन्त में उच्चरे जानेवाला पच्चवखाइ या वोसिर के पाठवत् अन्नत्थ शब्द भी वारंवार नही उच्चराया जाता लेकिन इसका संबंध सर्व आगारों के साथ
समजना।
२. सहसागारेण:- सहसा = अकस्मात् बिना विचारे, या अचानक अर्थात् विचारा भी न हो और अकस्मात कोई कार्य हो जाय, या जिस कार्य को जान बुझ कर न किया हो, सहसा हो गया हो। ऐसे अकस्मात, कार्यों का आगार = छूट उसे सहसागार कहते हैं। जैसे कि उपवास का प्रत्याख्यान किया हो, और छास का बिलौना कर रहे हों, जैसे ही कुछ छास की बूंद मुख में आकर गिर पड़ी हो, इस प्रकार की अकस्मात् घटना से प्रत्याख्यान का भंग न हो इस कारण से सहसागारेणं आगार रखा गया है ।
३. पच्छन्नकालेणं आगार : - वर्षा विगेरे से या आकाशमें महावायु से धूल चट जावे यापर्वत आदि की आडसे सूर्य आच्छादित होने से कितना दिन हुआ है, वह मालूम न पड़े इसलिये अनुमान से पोरिसिका काल पूर्णमानकर अपूर्ण काल में पोरिसी विगेरे प्रत्याख्यानपार लिया हो, फिर भी प्रत्याख्यान का भंग न हो उसे पच्छन्न कालेणं आगार कहा जाता है।
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प्रत्याख्यान का समय पूर्ण न हुआ हो, और ध्यान में आ जावे है तो तुरंत भोजन करे रहे हो तो रुक जाना चाहिये । जब प्रत्याख्यान का समय हो जाता है, उसके बाद शेष भोजन लेना चाहिये । और प्रत्याख्यान का समय नही हुआ है, ऐसा जानने पर भी भोजन करते रहे, तो प्रत्याख्यान का भंग हुआ, कहलाता है ।
४. दिशामोहेणं 'आगार :- दिशाओं के व्यामोह से याने दिशा भ्रम से (पश्चिम को पूर्व, 'पूर्व को पश्चिम दिशा समजे इस प्रकार दिशाभ्रम होनेसे भी ) अपूर्ण काल में प्रत्याख्यान ( पोरिसी, सार्धपोरिसी, पुरिमइट अवइट, एकाशनादि प्रत्याख्यान अपूर्ण काल में) पार लिया हो तो भी किये हुए प्रत्याख्यान का भंग नही होता है। उसे दिशामोहेणं आगार कहाजाता है । यहाँ दिग्मूढ = दिशामोह ये मतिदोष से होता है। लेकिन जान बुजकर नही होता है, अतः छूट रखी है।
१. इस प्रकार की दिग्मूढता के समय वास्तविक रीत से तो सूर्य पूर्व मेंही होता है । लेकिन दिग्मूढता से पश्चिम दिशा का आभास होता है, और समजता है कि पोरिसी विगेरे का समय तो कभी का पूर्ण हो गया अभि तों संध्या समय होने आया है, इस प्रकार की भ्रान्ति से प्रत्याख्यान अपूर्ण काल में पार लिया हो फिर भी प्रत्याख्यान का भंग नही होता है, इसलिए दिशामोहेणं आगार रखा जाता है । इसी प्रकार पश्चिम दिशा के लिए भी समजना, अन्य दिशाओं का यहाँ प्रयोजन नही है ।
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