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विशेषार्थ:- १७ वाँ अक्षर द्धार सरल है, इसलिए गाथा में नहीं दर्शाया किरभी - यत्किंचित् इस प्रकार है। वंदन सूत्र के सर्व अक्षर २२६ (दोसौ छब्बीस उसमें लघु अक्षर २०१ (दोसौ एक) हैं। और गुरु अक्षर (संयुक्त अक्षर) पच्चीस हैं। वो इस प्रकार--च्छाजा-ग्ग-जो-प्प-क्कं-ता-जं-क्क-क्क - ती-न - च्छा - क्क - क्क - क्क - व्व - व्व - च्छो - व्व - म्मा - क्क - स्स - क्क - प्पा- इति अक्षर द्वार। . . . __१८ वाँ 'पद दार इस प्रकार है-३३वीं गाथा में वंदन करनेवाले के ६ स्थान कहे ..
जायेंगे। उसमें अनुक्रम से ५-३-१२-२-३-५ पद है, और शेष २९ पद मिलके कुल ५८ पद · हैं। वो इस प्राकार... . इच्छामि-खमासमणो-वंदिउं-जावणिज्जाए-निसीहियाए- (ये प्रथम स्थान के पांच
पद-उसके बाद) अणुजाणह-मे-मिउठगहं (ये दूसरे स्थान के ३ पद उसके बाद) निसीहि. • 'अहो काय काय संफासं-खमणिज्जो-भे-किलामो-अप्पकिलंताण-बहुसुभेण-भे-दिवसोवळतो (ये तीसरे स्थान के १२ पद इसके बाद) जंता-भे (ये चौथे स्थान के पद है) जवणिज्ज-च-भे (ये ५ वें स्थान के तीन पद हैं) |
खामेमि-खमासमणो-देवसिअं-वइक्कम(ये ६ हे स्थान के ४ पद है) इस प्रकार : स्थानो • के कुल २९ पद हुए । (पश्चात्) . .. * आवश्यक सूत्र में स्सिं ये संयुक्त अक्षर है, तथा श्री ज्ञानविमलसूरि के बालाव-बोध में कहा हैं कि ये पद अनवस्थित होने से कितनेक आचार्य इसे गिनती मे नही गिनते, और . जंकिंचि मिच्छाए को एक ही पद मानते हैं। अतः बहुश्रुत कहे वह प्रमाण |
:: आवस्सियाए पडिळमामि-खमासमणाणं-देवसियाए-आसायणाए-तित्तीसन्नयराएजं किंचि मिच्छाए-मणदुक्कडाए-वयदुक्कड़ाए -कायदुक्कडाए-कोहाए-माणाए-मायाए- . . लोभाए-सव्वकालियाए-सव्वमिच्छोवथाराए-सव्वधम्मइलमणाए-आसयणाए-जो मेअइयारो-कओ-तस्स-खमासमणो-पडिळमामि-निंदामि-गरिहामि-अप्पाणं-वोसिरामि
॥ इस प्रकार कुल ५८ पद हुए | : (१) पदं च विभकत्यन्तमत्र ग्राहयम्-इति वचनात् । (२) अहो अव्यय होने से भिन्न पद संभवित होता है। अर्थ से तो अहोकायं एक ही है इसी कारण आव० मूत्र में एक शब्द से लिखागया लगता है।
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