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अवतरण:- इस गाथा में शरीर प्रतिलेखना के २५ बोल का १२ वा दार कहागया है।
पायाहिणेण तिय तिय, वामेयर बाहु-सीस-मुह-हियए ।
अंसुइटाहो पिढे चउ, छप्पय देहपण वीसा ॥२१॥ - शब्दार्थ:- पायाहिणेण-प्रदक्षिणा की तरह, वाम=बायाँ, इयर दाहिना (जिमणा), . बाहु-हाथ, हियए-हदय ऊपर, अंस-स्कंध, उड्ढ=ऊर्ध्व, ऊपर, अहो नीचे, .. गाथार्थ:- प्रदक्षिणा के अनुसार प्रथम बॉये हाथ की पश्चात दाहिने हाथ की, मस्तक की, मुख की और हदय की तीन तीन प्रतिलेखना करना। बाद में दोनो स्कंधो के ऊपर तथा नीचे 'पीठ की प्रमार्जना करना, ये चार प्रतिलेखना पीठकी और उसके बाद प्रतिलेखना दोनो पॉवो की, इस प्रकार पच्चीस प्रतिलेखना समजना || २१॥
... ॥ पुरुष के शरीर की प्रतिलेखना || विशेषार्थ:- दाहिने हाथ में वधूटक की हुई मुहपत्ति से प्रथम बाँये हाथ का मध्य, दाहिने और बाँये भाग की अनुक्रमसे प्रमार्जन करना। उसे वामभुजाकी ३ प्रतिलेखना समजना। पश्चात मुहपत्ति को बाँये हाथ में वधूटक करके दाहिने हाथ की तीन प्रमार्जना (बाँये हाथ की तरह) करना उसे दक्षिण भुजा की ३ प्रतिलेखना समजना | पश्चात वधूटक को अलग करके दोनो किनारों द्वारा ग्रहण की हुई मुहपत्ति से मस्तक (ललाट) का मध्य, दाहिना (जिमणा) और वाम (बाँया) भाग की अनुक्रम से प्रमार्जना करना उसे शीर्ष की ३ प्रतिलेखना समजना। इसी तरह मुखकी ३ तथा हदय की ३ प्रतिलेखना करना। इस प्रकार | पांचो अंगो की १५ प्रमार्जना हुई। ... उसके बाद मुहपत्ति को दाहिने हाथ में लेकर दाहिने स्कंध पर घुमाकर पीठ के दाहिने भाग की (दाहिने स्कंध का ऊपरि भाग को) प्रमार्जना करना । इसे पीठ की प्रथम प्रमार्जना समजना | पश्चात मुहपत्तिको बाँये हाथ में लेकर स्कंधके ऊपर फेरकर पीठ के .. बाँयें भागकी प्रमार्जना करना । इसे दूसरी प्रमार्जना समजना उसके बाद बाँये हाथकी मुहपत्ति से दाहिने हाथ की कक्षा (=कांख) के स्थान पर फेरकर दाहिनो पीठ का नीचे के भाग की प्रमार्जन करना । इसे पीठ की या काँखकी तीसरी प्रतिलेखना समजना। पश्चात मुहपत्ति को दाहिने हाथ में लेकर बाँयी कक्षा (काँख) के स्थान की प्रमार्जना करते (१) पीठ की प्रमार्जना में दोनो स्कंधो की दो, और दोनो कक्षा (कौख) की दो, ये ४ प्रमार्जना समजना| इसका कारण मुहपत्ति को प्रथम वहीं से फेरकर आगे की प्रतिलेखना की जाती है। इसलिए ऐसी परंपरा व्यवहार में प्रचलित है।