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________________ .... गाथार्थ:-दीक्षित माता, दीक्षित पिता, दीक्षितज्येष्ठ भाई (बड़ाभाई) विगेरे, तथा वय में छोटे हो फिरभी सभी रत्नाधिक (ज्ञान गुण से अधिक) इन चार से मुनि वंदन नहि कर वावे।, लेकिन इन चार के अलावा शेष सभी श्रमण आदि से (साधु-साध्वी श्रावक श्राविका) वंदन करवावे, याने साधु आदि 'चारों को वंदना करना ॥१४॥ . विशेषार्थ:- अर्थ सुगम प्रकार का आचरण ज्ञानादि गुण का बहुमान है। और उचित व्यवहार है। है, लेकिन विशेष यह है कि-साधु बने हुए माता-पिता ज्येष्ठभाइ तथा, 'मातामह पितामह से वंदन नही करवाना, चाहिये लेकिन गृहस्थावस्था में रहे हुए माता पितादिक वंदन करवाना तथा ज्ञानादि गुण में अधिक ऐसे रत्नाधिक लघु हों फिरभी उनसे वंदन नही करवाना, इस ७ वां-८ वां दार ( निषेधं ४ अनिषेध स्थान) . - अवतरण:- इस गाथा में पांच स्थान पर वंदना नहीं करनी चाहिये। निषेध स्थान.. संबंधि ७ वा दार। विविखत्त पराहत्ते, 'अपमत्ते, मा कयाइ वंदिना। आहारं निहारं , कुणमाणे काउकामे अ ॥१५॥ शब्दार्थ:- विक्खित्त-व्यग्रचित्त, व्याक्षिप्त, पराहुत्ते=पराङ्ग मुख हो, पमत्ते-प्रमाद मे हों, कयाइ-कदाचित, कभी भी, कुणमाणे-करते हो, काउकामे करने की इच्छावाले हो, : गाथार्थ:- गुरु जब व्यग्र (धर्म कार्य की चिंता मे व्याकुल) चित्तवाले हों, पराङ्गमुख । (सन्मुख बैठे न हों) हों, क्रोध, निद्रा विगेरे प्रमाद में हों, आहार -निहार करते हों, या करने की इच्छा वाले हों, तब कभी भी गुरु वंदन नहीं करना ॥१५॥ ___विशेषार्थ:- व्यग्रचित्त गुरु को वंदन करने से धर्म का अंतराय, पराग मुख गुरु . को वंदन से अनवधारण दोष, प्रमत्त भाव में वंदन करने से क्रोध, आहार करते हों और वंदन करने से आहार का अंतराय और निहार के समय वंदन करने से ( लघुनीति, वड़ीनीति ठीक १) मातामह, विगेर का ग्रहण आव० वृत्ति में (अवि)=अवि शब्द से किया है। और अवचूरि में माता-पिता का जिक्र उपलक्षण से किया है, (अर्थात माता, पिता कहने से मातामह माँ के पिता, पितामह-पिता के पिता विगेरे से वंदन नहीं करवाना। २) आव० नियुक्ति में वंदन करने वाले (वंदनदाता) साधुही होते है। इस प्रकार कहा है, ये बात साधु समाचारी के विषय में संभवित है। ३) अवचूरि आदि प्रतो में भी ये खूटता अ कार आव नियुक्ति से लिया है। (101
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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