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________________ ( ७० ) आगे दक्षिण उत्तर विस्तार वा उँचाईकूं कहै हैंदक्खिणउत्तरदो पुण सत्त वि रज्जू हवेदि सव्वत्थ । उड्ढो चउदसरज्जू सत्त वि रज्जूघणो लोओ ११९ भाषार्थ - लोक है सो दक्षिण उत्तर दिशाकं सर्व ऊंचाई पर्यंत सात राजू विस्तार है. ऊंचा चौदह राजू है । बहुरि सात राजूका घनप्रमाण है. भावार्थ-दक्षिण उत्तरकं सर्वत्र सात राजू चौडा है. ऊंचा चौधै राजू है. ऐसा लोकका घनफल करिये तब तीनसै तियालिम (३४३ ) राजू होय है. समान क्षेत्रखंढकर एक राजू चौडा लांबा ऊंचा खंड करिये ताकूं घनफल कहिये । मार्गे ऊंचाईके भेद कहै हैं, - मेरुस्स हिदुभाये सत्त वि रज्जू हवे अहोलोओ । उढम्हि उढलोओ मेरुसमो मज्झिमो लोओ ॥ १२०॥ भाषार्थ - मेरुके नीचे भागविषै सात राजू अधोलोक है. ऊपरि सात राजू ऊध्वलोक है. मेरुसमान मध्य लोक है. भावार्थ - मेरुके नीचें सात राजू अधोलोक ऊपर सात राजू ऊर्ध्व लोक, बीच में मेरुसमान लाख योजनका मध्यलोक है. ऐसें तीन लोकका विभाग जानना । आगे लोक शब्दका अर्थ कहै हैं, - संति जत्थ अत्था जीवादीया स भण्णदे लोओ । तस्स सिहरम्मि सिद्धा अंतविहीणां विरायंति ॥ १२१
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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