________________
( ५८ ) नाश होय, पुण्यकी वृद्धि होय. स्वर्गादिकके सुख भोग मोक्ष कू प्राप्त होय। __आगें उत्कृष्ट निर्जरा कहकरि निर्जराका कथनळू पूरण करै हैंजो समसुक्खणिलीणो वारं वारं सरेइ अप्पाणं । इंदियकसायविजई तस्स हवे णिज्जरा परमा॥११॥ ___ भाषार्थ जो मुनि, वीतराग भावरूप सुख, याहीका नाम पग्स चारित्र है सो याविर्षे तौ लीन कहिये तन्मय होय बारवार आतमा सुमिरै ध्यावै. बहुरि इन्द्रिगनिका जीतन हारा होय, ताकै उत्कृष्ट निर्जरा होय है. भावार्थ-इन्द्रियनिका कषायनिका निग्रहकरि परम वीतराग भावरूप प्रात्मध्यानविषे लीन होय ताकै उत्कृष्ट निर्जरा होय ।
दोहा पूरव बांधे कर्म जे, क्षरे तपोबल पाय। सो निजंग कहाय है, धारै ते शिव जांय ॥६॥
इति निर्जरानुप्रेक्षा समाप्ता ॥ ९ ॥
अथ लोकानुप्रेक्षा लिख्यते. ___ भागे लोकानुप्रेक्षाका वर्णन करिये है. तामैं प्रथमही लोकका आकारादिक कहेंगे. तहां किछू गणित प्रयोजनकारी जाणि संक्षेपताकरि कहिये है। भावार्थ- गणितकौं अन्य ग्रंथनिके अनुसार लिखिये है. तहां प्रथम तौ परिकर्माष्टक है