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________________ भाषार्थ-जो भव्य परदेह जो स्त्री आदिककी देह ताते विरक हुवा संता निज देहविषै अनुराग नाहीं करै है ताके अशुचि भावना सार्थिक होय है. भावार्थ-केवळ विचारही.. से वैराग्य प्रगट होय ताकै भावना सत्यार्थ कहिये । . दोह स्वपर देहा अशुधि लखि, तजै तास अनुराग। ताकै सांची भावना, सो कहिये बडमाग॥६॥ इति शुचित्वानुप्रेक्षा समाप्ता ॥ ६ ॥ अथ आस्रवानुप्रेक्षा लिख्यते। मणवयणकायजोया जीवपयेसाणफंदणविसेसा। मोहोदएण जुत्ता विजुदा विय आसवा होंति॥४८॥ भाषार्थ-मन वचन काययोग हैं ते ही प्राघव हैं। कैसे है ? जीवके प्रदेशनिका जो पंदन कहिये चलणा कंपना तिसके विशेष हैं ते ही योग हैं. बहुरि कैसे हैं ते ? मोहकमेका उदय जे मिथ्यात्व कषाय तिन कर्म सहित हैं. बहुरि मोहके उदयकरि रहित भी हैं. भावार्थ-मन वचन कायके निमित्त पाय जीवके प्रदेशनिका चलाचल होना सोयोग है तिनहीकू आस्रव कहिये. ते गुणस्थानकी परिपाटीविषै मूक्ष्मसांपराय दशमां गुणस्थानताई तो मोहके उदयरूप ययासंभव मिथ्यात्व कषायनिकरि सहित हेय हैं. तासांपरायिकमानव कहिये बहुरि उपरि तेरहवां गुणस्यानताई मोहके
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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