SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लब्धिसार क्षपणासारजी। ( भाषा और संस्कृतटीका सहित ) भगवान नेमिचन्द्राचार्य जब गोमट्टसारजी सिद्धांत यकी रचना कर चुके और उसमें केवल बीस परूपणाओंका तथा जीवको अशुद्ध दशामें रखनेवाले कर्मोंका ही वर्णन आपाया तो उनने सांसारिक दशासे मुक्त होनेकी रीतिका भी वर्णन करना उपयुक्त समझा । बस ! इसी बातका इस ग्रन्थमें सविस्तर वर्णन है। यदि आपने अपनी अनन्त कालसे संसारमें परिभ्रमणकर प्राप्त हुई पर्यायोंका दिग्दशेन कर लिया है, यदि आपने उन अशुद्ध वैभाविक पर्यायोंको उत्पन्न करानेवाले वास्तविक कर्मरूपी शत्रुओंकी समस्त सेनाको पहिचान लिया है तो आपका सबसे पहिले यह कर्तव्य है कि आप अपनी शुद्ध दशा होनेकी रीति जो प्राचार्य महाराजने इस अन्यमें बतलाई है, उसका मनन अध्ययन करें। पृष्ट कागज, मोटे अक्षरों में पं० टोडरमल्लजी कृत भाषा भाष्य और संस्कृतटीका सहित है । पृष्ठ संख्या ११०० सौ । न्योछावर १२॥) पोष्टेज १।) जुदा। जिन भाइयोंने गोमट्टसारजी पूर्ण लिये हैं उनको तो अवश्य ही यह ग्रंथ मंगाना चाहिये । न्योछावर उनके लिए १०) २० ही है । पोष्टेज जुदा।
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy