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(२०५) त्यालय जाय अपराह्नको सामायिक आदि क्रिया कर्मकरि च्यारि प्रकार पाहारका त्यागकरि उपवास प्रहण करै. यूहका समस्त व्योपारकू छोडिकरि धर्म ध्यानकरि तेरसि सातकी राति गमावै. प्रभात उठिकरि सामायिक क्रिया कर्म करै. आ चौदसिका दिन शास्त्राभ्यास धर्म ध्यानकरि गमाय अपराह्नका सामायिक क्रिया कर्म करि गति तैसे ही धर्मध्यान करि गमाय नवमी पूर्णमासीकै प्रभात सामायिक बन्दनारि जिनेश्वरका पूजन विधानकरि तीन प्रकारके पात्रकौं पडगाहि बहुरि तिस पात्रकौं भोजन कराय श्राप भो. जन करै ताकै प्रौषध होय है. भावार्थ-पहलै शिक्षात्रतमें प्रौषधकी विधि कही थी, सो भी इहां जाननी. गृहव्यापार भोग उपभोगकी सामग्री समस्तका त्यागकरि एकांतमें जाय बैठे अरे सोलह पहर धर्मध्यानमें गमावणी. इहां विशेष इतनाजो तहां सोलह पहरका कालका नियम नाहीं कह्या या अर अतीचार भी लागै. अर इहां प्रतिमाकी प्रतिज्ञा है यामें सोलह पहरका उपवास नियमकरि अतीचार रहित करै है. अर याके प्रतीचार पांच हैं. जो वस्तु जिस काल राखी होय तिसका उठावना मेलना तथा सोक्ने बैठनेका संधारा करना सो विना देख्या जाण्या, विना यतनत करै सो तीन भतीचार तौ ए. भर उपवासकेविषै अनादर करै, प्रीति नाही करै अर क्रिया कर्ममें भूलि जाय ए पांच प्रतीचार लगावै नाहीं ॥ ३७३-३७६ ॥