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( ग )
पाया करे है । ते सर्व सुलभ हैं । अर सम्यग्ज्ञान चारित्र स्वरूप मोक्षका मार्गका पावना अति दुर्लभ है । ऐसें कहथा है। आगे धर्मानुप्रेक्षाका वर्णन एकसौ छत्तीस गाथामें है, तहां निवै गाथा में तो श्रावक धर्मका वर्णन है । तामैं छत्तीस गाथा में तो अविरत सम्यग्दृष्टीका वर्णन है । पीछे दोय गाथामें दर्शन प्रतिमाका, इकतालीस गाथामें व्रतमतिमाका, तिनमें पांच व्रत तीन गुणवत, च्यारि शिक्षाव्रत ऐसे बारह व्रतनिका, दोय गाथा में सामायिक प्रतिमाका, छह गाथा में प्रोषध प्रतिमाका, तीन गायामें सचित्त त्याग प्रति - माका, दोय गाथामें अनुमति त्याग प्रतिमाका दोय गाथामें उद्दिष्ट आहार त्याग प्रतिमाका, ऐसें ग्यारा प्रतिमाका वर्णन है । बहुरि वियालीस गाथामें मुनिके धर्मका वर्णन है। तहां रत्न त्रयकरि युक्त मुनि होय उद्यम क्षमा प्रादि दश लक्षण धर्मकूं पालै, तिन दश लक्षणका जुदा २ वर्णन है । पीछे हिंसा धर्मकी बढाई वर्णन है । बहुरि फेरि कहया है जो धर्म सेवना सो पुण्य फलके अर्थिन सेवना, मोक्षके अर्थि सेवना । बहुरि शंका आदि आठ दूषण हैं सो धर्म में नाहीं राख । निशकित आदि आठ अंग सहित धर्म सेवना, ताका जुदा जुदा वर्णन है । बहुरि धर्मका फल माहात्म्य वर्णन किया है । ऐसें धर्मानुप्रेक्षाका वर्णन समाप्त कीया है। बहुरि आगे धर्मानुप्रेक्षाकी चूलिका स्वरूप बारह प्रकार तप है । तिनिका जुदा जुदा वर्णन है । ताकी गाथा इक्यावन हैं । बहुरि तीन गाथा में कर्ता अपना कर्तव्य प्रगटकरि अन्त मंगल करि ग्रन्थ समाप्त किया है | सर्व गाथा क्यारिसे निवे हैं असें जानना ।